राजधानी दिल्ली-एनसीआर में नवंबर की शुरुआत से ही वायु प्रदूषण के कारण जिस तरह के हालात बने हैं, उसे सेहत के लिहाज से काफी हानिकारक माना जा रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ सभी लोगों को इन दिनों में बेहद सावधानी बरतते रहने की सलाह देते हैं, विशेषकर जिन लोगों को पहले से श्वसन रोगों या क्रोनिक बीमारियों की समस्या रही है, यह वातावरण उनकी जटिलताओं को ट्रिगर करने वाला हो सकता है। रविवार को दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) करीब 480 दर्ज किया गया, एनसीआर के कई हिस्सों में ये 500 के पार बना हुआ है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, दीपावली के पहले से जिस तरह से दिल्ली की हवा दमघोंटू होती जा रही है, ये गंभीर चिंता का विषय है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी लोगों की सेहत पर इसके नकारात्मक असर हो सकते हैं। प्रदूषण के कारण बढ़ती चिंताओं को देखते हुए सरकार ने कुछ पाबंदियां लागू की हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगले 15-20 दिन काफी चुनौतीपूर्ण हैं, जिसमें लेकर सावधान रहने की जरूरत है। राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, इसके कारण होने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए राज्य की शिक्षामंत्री आतिशी ने रविवार को कहा कि दिल्ली में प्राथमिक विद्यालय 10 नवंबर तक बंद रहेंगे। 6-12 कक्षा के लिए स्कूलों को ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई कराने का विकल्प दिया गया है। इससे पहले शुक्रवार को प्रदूषण का स्तर ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंचने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजधानी के सभी सरकारी और निजी स्कूलों में छुट्टी की घोषणा की थी।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, मौसम की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए सभी लोगों को एहतियातन मिनी-लॉकडाउन का पालन करते रहने की आवश्यकता है। अमर उजाला से बातचीत में नोएडा स्थित एक निजी अस्पताल में श्वसन रोगों के विशेषज्ञ डॉ एन.आर. सहाय कहते हैं, प्रदूषण सभी लोगों के लिए हानिकारक है, भले ही आपको पहले से कोई समस्या नहीं भी है तो भी सावधानी बरतते रहना जरूरी है। वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने के कारण श्वसन समस्या वाले नए रोगियों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है। हमें खुद से ‘मिनी-लॉकडाउन’ का पालन करते रहना जरूरी है।
इसके लिए दिन के समय घरों के भीतर रहें, प्रदूषकों को घर में प्रवेश से रोकने के लिए दरवाजे-खिड़की बंद रखें। अगर बाहर जाने की आवश्यकता है तो मास्क जरूर पहनें, जिससे प्रदूषित हवा के शरीर में प्रवेश को रोका जा सके।
डॉ सहाय कहते हैं, सभी आयुवर्ग वालों में वायु प्रदूषण से प्रतिकूल प्रभाव देखे जा रहे हैं। आपको आश्चर्य हो सकता है कि बढ़ता प्रदूषण अजन्मे बच्चे की सेहत को भी प्रभावित कर सकता है। जब गर्भवती की सांस के माध्यम से विषाक्त पदार्थ फेफड़ों में चले जाते हैं, तो रक्त के माध्यम से यह प्लेसेंटा और भ्रूण तक पहुंच सकते हैं। बच्चों के विकास को प्रभावित करने के साथ ये उनमें कई प्रकार की जन्मजात स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ाने वाली दिक्कत भी हो सकती है।
450-500 की एक्यूआई वाली हवा से शरीर को होने वाले नुकसान 25-30 सिगरेट पीने के बराबर है, यह उनमें सांस लेने की समस्याओं को बढ़ाने वाली हो सकती है। वायु प्रदूषण के कारण जन्म के समय वजन कम होने, बच्चों में अस्थमा, फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी, श्वसन संक्रमण और एलर्जी की समस्या हो सकती है। पिछले दिनों ओपीडी में सांस की समस्या वाले बच्चों के मामले बढ़े हैं।
चूंकि प्रदूषण क्रोनिक बीमारियों का कारण भी बन सकती है, इसलिए माता-पिता को गंभीरता से बच्चों को प्रदूषण से बचाने के लिए उपाय करते रहना चाहिए।