हबीब तनवीर रंग मंच का बेताज बादशाह
गणेश कछवाहा
रंगमंच को नई सूरत देने वाले प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर (85) साल की उम्र में गुजर गए। उनका जन्म छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 01 सितम्बर 1923 को हुआ था।08 जून,2009 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में निधन हो गया।… उन्होंने 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित की थी। उनका पूरा नाम हबीब अहमद खान था, लेकिन कविता लिखनी शुरू की तो अपना तखल्लुस ‘तनवीर’ रख लिया।
चरण दास चोर और आगरा बाजार ये दो नाटक हबीब के पर्याय बन गए थे।
क्लासिक थियेटर को भी अपने गांव और लोक संस्कृति के परिवेश से जोड़कर मिट्टी की सोंधी महक को पुरी दुनिया में फैलाना उसका एहसास कराने की अद्भुत कला थी हबीब तनवीर में जो हबीब को सबसे जुदा और महान बनाती है।
सम्मान,अलंकरण और पुरस्कार —
हबीब तनवीर को संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड (1969), पद्मश्री अवार्ड (1983) संगीत नाटक एकादमी फेलोशीप (1996), पद्म विभूषण(2002) जैसे सम्मान मिले। वे 1972 से 1978 तक संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी रहे। उनका नाटक चरणदास चोर एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल (1982) में पुरस्कृत होने वाला ये पहला भारतीय नाटक गया।
नाटकों की एक समृद्ध सूची –
आगरा बाजार (1954),शतरंज के मोह्रे (1954), लाला शोह्रत् राय (1954),मिट्टि की गाड़ी (1958),गांव के नौ ससुराल, मोर् नओ दामन्द् (1973),चरणदास चोर (1975), उत्तर राम चरित्र (1977),बहादुर कलरिन् (1978),पोङा पंडित (1960) , एक् औरत ह्य्पथिअ तुमको (1980 के दशक) जिस लाहौर नई देख्या (1990),कम्देओ का अपना बसंत ऋतु का सपना (1993),टूटे पुल (1995),जहरीली हवा (2002) एवम राज रक्त् (2006)।
यह अत्यंत दुखद है कि अभी तक सरकार द्वारा उनके नाम और काम पर कुछ विशेष नहीं किया। नाट्य अकादेमी की स्थापना तथा कोई थियेटर या सांस्कृतिक भवन तक नहीं है।
खैर उनका व्यक्तित्व और कृतित्व इन सबसे बहुत ऊंचा है। इससे हमारी सांस्कृतिक विरासत और धरोहर संरक्षित और समृद्ध होती है।सरकार का मान और सम्मान बढ़ता है।
तनवीर हबीब या हबीब तनवीर जो भी कहें। तुम्हें असंख्य सलाम। सादर नमन विनम्र श्रद्धांजलि।