एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। यहां एक पांच महीने के मासूम को 21 बार गर्म सलाखों से दागा गया। हालत बिगड़ने पर बच्चे को नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसका एसएनसीयू वार्ड में इलाज चल रहा है।
दगना जैसे कुप्रथा का शिकार मासूम, अब जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। एक ऐसा ही मामला फिर शहडोल से सामने आया है। यहां एक पांच महीने के बच्चे को 21 बार गर्म सलाखों से दागा गया। जब उसकी तबियत ठीक नहीं हुई तो उसे अस्पताल में भर्ती कराया।
घटना मुख्यालय से लगे सोहागपुर के मैकी गांव का है, जहां निमोनिया और सांस की तकलीफ होने पर मासूम बच्चे को गर्म सलाखों से दगवाया गया। हैरानी की बात तो ये है कि बच्चे के माता-पिता ने ही 21 बार गर्म सलाखों से शरीर में दगवाया। वहीं, जब मासूम की हालत ज्यादा बिगड़ी तो उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
मामले की जानकारी जब मीडिया कर्मियों को लगी तो अस्पताल के पीआईसीयू में मीडिया कर्मियों का दल पहुंचा। लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने मासूम बच्चे की फोटो लेने से मीडिया कर्मियों को गेट पर ही रोक दिया गया। वहीं, जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर जीएस परिहार का कहना है कि हम फोटो नहीं दे सकते हैं। डॉक्टर परिहार का यह भी कहना है कि मासूम बच्चे को 21 बार गर्म सलाखों से दागा गया था। उसके निशान भी अब मिट गए हैं, लेंस से ही दिख रहा है। दाग समझ में नहीं आ रहे हैं।
शहडोल में पिछले कुछ दिनों में मासूमों को गर्म सलाखों से दागने के कई मामले सामने आए हैं। ऐसे में कई मासूमों की जान चली गई। गौरतलब है कि शहडोल आदिवासी जिला है। ऐसे में यहां आज भी झाड़ फूंक कर सलाखों को दागने की प्रथा जारी है। ऐसे में आदिवासी कुप्रथा के चलते बच्चों के बीमार पड़ने पर गर्म सलाखों से दगवाते हैं। पिछले कुछ दिनों में ही 10 से अधिक मासूमों की मौत हो चुकी है।
बता दें कि एमपी और राजस्थान के आदिवासी अंचलों में शरीर दागने की इस प्रथा को डाॅम कहा जाता है। यह एक अंधविश्वास है। ग्रामीणों का ऐसा अंधविश्वास है कि अगर किसी बच्चे को कोई बीमारी होती है तो उसे डाॅम लगा देने से उसकी बीमारी चली जाती है। गर्म सलाखों दागने के कारण कई बार बच्चों की जान भी चली जाती है। वहीं, परिजनों को लगता है कि उसकी जान बीमारी से गई है। ऐसे में बच्चों के बीमार पड़ने के बाद भी यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है।