चमकी बुखार (इंसेफेलाइटिस) के कारण हर साल बड़ी संख्या में बच्चे अस्पतालों में भर्ती होते हैं, इसके कारण मौत का खतरा भी अधिक देखा जाता रहा है। सरकार लगातार इस खतरनाक रोग से बचाव लेकर अभियान चला रही है, हालांकि अब भी ये बड़ा खतरा बना हुआ है। हालिया मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बिहार के कुछ जिलों में एक बार फिर से चमकी बुखार के मामले बढ़ रहे हैं। मुजफ्फरपुर में करीब 14 लोगों में चमकी बुखार के लक्षण दिखने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है, हालांकि रोगियों के जांच की रिपोर्ट की अभी प्रतीक्षा है।
रिपोर्टस के मुताबिक मुजफ्फरपुर के पीआईसीयू में शनिवार-रविवार दोनों दिन 7-7 बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। डॉक्टरों की टीम लगातार बच्चों की निगरानी कर रही है। खून के सैंपल को जांच के लिए भेजा गया है, रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सभी लोगों को बुखार से बचाव के उपाय करते रहने की सलाह दी है। आइए जानते हैं कि चमकी बुखार के क्या कारण हैं और बच्चों को इससे किस प्रकार से सुरक्षित रखा जा सकता है?
बिहार के कई राज्य इस गंभीर रोग के शिकार रहे हैं- मुजफ्फरपुर उनमें से एक है। पिछले कई वर्षों से उत्तर प्रदेश-बिहार सहित कई राज्यों में इंसेफेलाइटिस के मामले स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए बड़ी चिंता का कारण रहे हैं। इंसेफेलाइटिस के मामले बैक्टीरियल या वायरल दोनों प्रकार के संक्रमण के कारण हो सकते हैं। इसके कारण ब्रेन इंफ्लामेशन का खतरा बढ़ जाता है जिसके गंभीर दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। ये बीमारी वैसे तो किसी भी उम्र में हो सकती है हालांकि बच्चों को इसका सबसे ज्यादा शिकार देखा जाता रहा है।
वायरल-बैक्टीरियल संक्रमण, ऑटोइम्यून इंफ्लामेशन, कीड़ों के काटने या कुछ प्रकार की बीमारियों के कारण इंसेफेलाइटिस की समस्या हो सकती है इसमें ब्रेन में सूजन हो जाता है। इंसेफेलाइटिस के लगभग 70% मामले वायरस के संक्रमण के कारण होते हैं, जिनमें छोटे बच्चे (एक वर्ष और उससे कम उम्र) और बुजुर्गों (65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के) के लोगों में खतरा सबसे ज्यादा देखा जाता रहा है।
वायरस से मुकाबले की स्थिति में मस्तिष्क में सूजन की समस्या हो सकती है। समय के साथ इस रोग के लक्षण बिगड़ते जाते हैं और कुछ स्थितियों में ये जानलेवा भी हो सकती है।
इंसेफेलाइटिस आमतौर पर बुखार-सिरदर्द जैसे लक्षणों के साथ शुरू होता है। समय पर अगर इस समस्या पर ध्यान न दिया जाए या इलाज न किया जाए तो इसके कारण दौरे पड़ने, भ्रम, चेतना की हानि और यहां तक कि कोमा भी हो सकता है। इसके लक्षण समय के साथ गंभीर होते जाते हैं। इन स्थितियों में भयंकर सरदर्द, उल्टी-भ्रम होने, याददाश्त की समस्या, बोलने-सुनने की दिक्कत होने, बेहोशी की समस्या हो सकती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, इंसेफेलाइटिस से बचाव को लेकर सभी लोगों को सतर्कता बरतते रहने की आश्यकता होती है। विशेषतौर पर जिन शहरों में पहले से इसके मामले रिपोर्ट किए जाते रहे हैं वहां बच्चों की सेहत को लेकर सभी लोगों को विशेष सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है।
स्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, वायरल इंसेफेलाइटिस को रोकने का सबसे अच्छा तरीका उन वायरस के संपर्क से बचना है जो इस बीमारी का कारण बन सकते हैं।
इसके लिए स्वच्छता का ध्यान रखना सबसे आवश्यक है। हाथों को साबुन और पानी से बार-बार और अच्छी तरह धोएं। कपड़े-बिस्तर को एक दूसरे से शेयर न करें। कुछ संक्रमित मच्छरों के काटने से भी इस रोग के होने का खतरा रहता है इसलिए आसपास की साफ-सफाई का भी विशेष ध्यान रखा जाना जरूरी है। अगर आपमें या बच्चे में इस रोग के लक्षण दिख रहे हैं तो तुरंत अस्पताल जाएं।