यहां तो बैगा ही करता है पूजा, फ‍िर आदिवासी के हाथों जलती है होलिका

by Kakajee News

रायपुर। भिलाई-3 के आजाद चौक का अपना इतिहास है। अपनी परंपरा है। आदिवासी बहुल्य इस बस्ती में सौ साल से ज्यादा समय से होलिका दहन किया जा रहा है। होलिका दहन आज भी आदिवासी समाज द्वारा अपनी परंपरानुसार किया जाता है। बैगा द्वारा होलिका की पूजा की जाती है। आजाद चौक भिलाई-3 शीतला पारा की तरह सबसे पुरानी बस्ती है। बताया जा रहा है कि यहां सालों पहले आदिवासी समाज के लोगों ने आकर बसना शुरू किया था। तब से आजाद चौक में आदिवासी समाज द्वारा ही होलिका दहन किया जा रहा है। आज आजाद चौक के आसपास भले ही अन्य समाज के लोग बहुतायत मात्रा में बस गए हो, पर होलिका दहन आज भी आदिवासी समाज के लोग करते हैं। इसमें सभी समाज के लोग शामिल होते हैं।

बैगा द्वारा की जाती है पूजा
होलिका दहन के पूर्व आदिवासी समाज के बैगा द्वारा पूरेे विधि विधान से एक घंटे तक होलिका की पूजा की जाती है। पूजा के बाद बैगा ही होलिका में आग लगाता है। आग लगाने के पहले आदिवासी समाज के लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं। सभी लोग होलिका पर्व पर दुखों का नाश होने की कामना करते हैं।

1907 में होलिका दहन शुरू हुआ
आजाद चौक के निवासी बिसाहू ठाकुर बताते हैं कि आदिवासी समाज द्वारा होलिका दहन करते सौ साल से ज्यादा का समय हो गया। 1907 के आसपास यहां होलिका दहन शुरू हुआ था। पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा आज भी जीवित है। जैसा उस वक्त होलिका दहन किया जाता था, वैसा ही आज भी किया जाता है। इसमें थोड़ा भी बदलाव नहीं किया गया है। बिसाहू ठाकुर बताते हैं कि होली व होलिका दहन को लेकर बस इतना ही बदलाव आया है कि पहले होलिका की तैयारी एक महीने पहले शुरू हो जाया करती थी। एक महीने पहले से नंगाड़ा और फाग गीत शुरू हो जाता था। अब तो होलिका दहन के दिन ही नंगाड़ा व फाग गीत गाए जाते हैं।

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