कहने और सुनने के साथ-साथ लिखने में बड़ा अजीब लगता है कि पूरे प्रदेश में खेलों का प्रतिनिधित्व करने वाले मंत्री अपने ही जिले के हो और वहां के जिला मुख्यालय का स्टेडियम पिछले अढ़ाई बरसो से बदहाल हो तो ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के खिलाडी केवल अपने घर के पास स्थित मैदान से ही खेल कर तसल्ली कर लेते है। एक जमाना था जब रायगढ़ जिले से हर खेल में खिलाड़ी जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर और राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक अपना खेल प्रदर्शन करते हुए जिले का नाम रोशन करता था लेकिन अब ऐसा नही। जब जिले का एकमात्र स्टेडियम ही सुविधा के अभाव में केवल नाम का स्टेडियम हो तो ऐसे में जब खेल मंत्री सहित प्रदेश सरकार पर आरोप लगे तो उसे राजनीति का रूप दे दिया जाता है।
रायगढ़ जिला मुख्यालय में अढ़ाई बरसो में स्टेडियम केवल नाम का स्टेडियम बन गया है। जहां खिलाड़ियों के लिए एक भी कोच नही है और जिले के खेल अधिकारी पदस्थ तो हैं लेकिन वो भी कार्यालय की शोभा बढ़ाते है। इतना ही नही स्कूल शिक्षा विभाग से नियुक्त एक खेल अधिकारी तो आते ही नही है। पहले कभी इस स्टेडियम में अलग-अलग खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए पहल होती थी लेकिन अब इस स्टेडियम के भीतर कुछ निजी कोच खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देकर शुल्क ले रहे हैं और इसका एक बड़ा हिस्सा स्टेडियम में देने से दूर रहते हैं इतना ही नही आज स्टेडियम के भीतर व बाहर देखने से लगता है कि अब यहाँ कभी कोई अधिकारी झांकता नही है। मैदान में उगी घास, जंगल का नजारा दिखाती है। मैदान के किनारे लगी लाईट लगभग खराब हो चुकी है। अंदर घुसने वाले द्वार जंग लग चुके हैं। जालियां टूट चुकी है। स्वीमिंग पुल दो सालों से बंद पड़ा है। ऐसे में जिले में खिलाड़ी कैसे पैदा होंगे। इसका जवाब प्रदेश के खेल मंत्री उमेश पटेल को देना चाहिए और स्थानीय विधायक प्रकाश नायक जो ट्रांसफार्मर से लेकर छोटे-छोटे शिलान्यास व भूमि पूजन के जरिए सुर्खियां बंटोरते हैं उन्हें भी नींद से जागना चाहिए।
प्रदेश का एकमात्र स्टेडियम रायगढ़ जिला मुख्यालय में है जहां क्रिकेट, फुटबाल, बॉलीबॉल, बास्केट बॉल, खो-खो, कबड्डी, हॉकी, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, स्केटिंग, स्वीमिंग सहित दर्जनों ऐसे खेल हैं जो यहां आसानी से कराए जा सकते हैं लेकिन किसी भी खेल का एक कोच इस स्टेडियम में सरकार ने नियुक्त नही किया है। जबकि भाजपा शासनकाल में इस स्टेडियम में समय-समय पर खेलों के आयोजन व खिलाड़ियों को आगे लाने के लगातार प्रयास किये जाते रहे हैं। लेकिन विडंबना है कि प्रदेश के खेल मंत्री उमेश पटेल रायगढ़ जिले से है और उन्होंने कभी इस स्टेडियम की सुधि तक नही ली है। बिना कोच के इस स्टेडियम के भीतर तीन सालों से कोई बडा खेल आयोजन नही किया गया है और न ही खिलाड़ियों को आगे लाने के लिए कोई प्रयास किये गए हैं ऐसे में अगर आरोप निष्क्रियता के आरोप लगाए जाते हैं तो उसे राजनीति का रूप देकर मामले को दबा दिया जाता है।
वर्तमान में रायगढ़ स्टेडियम में खेल एवं युवा कल्याण विभाग की तरफ से सहायक संचालक के पद पर संजय पाल दो सालों से हैं जो केवल कार्यालय में बैठकर फ़ाइलों में लगी धूल झाड़ते हैं। स्कूल शिक्षा विभाग की तरफ से सहायक खेल अधिकारी बीए खेरवार को स्टेडियम में खिलाड़ियों के लिए भेजा गया था जो आज तक स्टेडियम आए ही नही हैं। इतना ही नही इस स्टेडियम के भीतर निजी कोच जीम, बास्केट बॉल, बैडमिंटन, ताइक्वांडो, किक बाक्सींग खिलाड़ियों को सिखाते हैं जो प्रतिमाह खिलाड़ियों से शुल्क की वसूली करके कुछ राशि स्टेडियम में बतौर किराए की देते हैं जिनसे लाईट का खर्चा तक नही निकलता। ऐसे में जिले के कलेक्टर से लेकर खेल अधिकारियों को सोचना चाहिए कि बदहाल स्टेडियम की खुशहाली कैसे लौटेगी!
इस स्टेडियम में कभी राष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजन होनें से खिलाड़ियों को लाभ मिलता था इतना ही नही अखिल भारतीय स्तर पर क्रिकेट प्रतियोगिता आयोजित होती थी और अन्य आयोजन भी यहां होते थे। लेकिन अब इन पर कोई सोचता तक नही है। स्थानीय खिलाड़ियों के लिए यहां के दरवाजे बरसो से बंद हो चुके हैं चूंकि सरकारी तौर पर भी एक भी कोच किसी भी खेल का यहां नियुक्त नही किया गया है तो ऐसे में नन्हें खिलाड़ी कैसे अपने खेल प्रतिभा का निखार करके राष्ट्रीय स्तर पर जिले का नाम रोशन करेंगे।
जुआरी व शराबियों का अड्डा बना स्टेडियम
रायगढ़ स्टेडियम की सुंदरता पर पूरी तरह ग्रहण लग चुका है वहीं शराबियों व जुआरियों का यह सबसे सुरक्षित अड्डा बन चुका है।शाम होते ही यहां जोडो का आना जाना शुरू हो जाता है और शराबियों के लिए सबसे सुरक्षित जगह यह स्टेडियम बन चुका है। इतना ही नही खेलों के आयोजन के समय तो सुबह बोतलों एवं गिलास मैदान में बिखरे पड़े रहते है।
स्टेडियम को बचाने के लिए ईमानदारी से प्रयास हो खेल युवा कल्याण मंत्री उमेश पटेल के गृह जिले का सबसे बड़ा रायगढ़ स्टेडियम धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोते जा रहा है। इसके लिए कोई बड़े प्रयास होने चाहिए और स्थानीय विधायक को भी समय-समय पर शहर व जिले के खिलाड़ियों के लिए आवाज उठानी चाहिए।
सौंदर्यीकरण के लिए लगी मूर्तियां हो गई गायब
रायगढ़ स्टेडियम के मुख्य द्वार पर सुंदरता के लिए लगाई गई प्रतिमा अब खंडित हो चुकी है। वह उसी हाल में पड़ी हुई है। स्टेडियम परिसर में बड़े-बड़े घस उग चुके हैं, देखरेख के अभाव में यहां बरसो से साफ-सफाई नही हो पा रही है। मुख्य गेट के पास करीब 6 साल पहले पूर्व कलेक्टर अमित कटारिया व मुकेश बंसल के समय सौंदर्यीकरण के लिए खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए स्टेचु लगाए गए थे जिन्हें बचाने के प्रयास नही होनें से वो भी तोड़फोड़ का शिकार हो रहे हैं स्थिति यह है कि इन स्टेचु की स्थिति देखने से ही दुख होता है।