पूर्वी सिंहभूम जिले के गुड़ाबांधा में स्थित बेशकीमती पन्ने के भंडार पर देश-विदेश के तस्करों की नजर वर्षों से है। रुपये का लालच दिखा रत्नों के तस्कर स्थानीय ग्रामीणों से ही पन्ने का अवैध खनन करवाते हैं। पत्थरों के बीच से पन्ना तलाशने के लिए तस्करों ने यहां के लोगों को रैट माइनिंग की ट्रेनिंग दी और यहां से अकूत संपदा ले जाकर मालामाल हो रहे।
पन्ना की तस्करी में पिछले दस सालों में अब तक 38 लोग जेल जा चुके हैं और लगभग सात करोड़ का पन्ना जब्त हो चुका है। वर्ष 2008 में इस क्षेत्र में तस्करी का खेल शुरू हुआ। पहले क्वाटर्ज पत्थर की तस्करी की जाती थी और उसी पत्थर की तलाश में ग्रामीण पन्ना तक पहुंचे। दरअसल क्वाटर्ज पत्थर का इस्तेमाल साबुन बनाने में किया जाता है।
विभिन्न साबुन कंपनियों तक पत्थर पहुंचाने वाले तस्करों के जरिए ग्रामीण अवैध उत्खनन से जुड़े। क्वाटर्ज पत्थर तस्करों के साथ विशेषज्ञों के बीच टीम होती थी लिहाजा उन्हीं विशेषज्ञों ने क्वाटर्ज की तलाश में गुड़ाबांधा के पावड़ा पहाड़ और उसके आसपास के क्षेत्रों में पन्ना के होने का पता किया। उसके बाद ग्रामीणों की मदद से उन लोगों ने बारुणमुटी टोला क्षेत्र को अपना आधार बनाया क्यों कि यहां तक पहुंचना उस वक्त पुलिस के लिए मुश्किल था और जगह भी काफी उंचाई पर नहीं थी।
रैट होल माइनिंग की दी ट्रेनिंग
तस्करों ने ही इस इलाके में आकर पहले ग्रामीणों की पन्ना निकालने के लिए रैट माइनिंग की ट्रेनिंग दी। क्योंकि पन्ना बायोटाईट सिस्ट में यहां था इसलिए उसे किस तरह से निकाला जाना है, कैसे सुरंग बनानी है, उसकी भी विधि बतायी। इसमें चूहे की तरह होल कर उसके अंदर जाना था और वहां से सिस्ट को निकालकर उसमें लगे पन्ने को बाहर करना था। तस्करों ने कुछ ग्रामीणों को रैट होल माइनिंग की ट्रेनिंग वर्ष 2009 में दी और उन लोगों ने काम करना शुरू कर दिया।
एक लाख के पन्ना के मिलते थे 500 रुपए
सुरंग बनाकर उसमें से बायोटाईट सिस्ट निकालने में ग्रामीणों को दो से तीन दिन लगते थे जिसके बाद ही एक रत्ती पन्ना मिलता था। जिस पन्ना की कीमत बाजार में एक लाख रुपये है उसे निकालने में ग्रामीणों को पांच सौ रुपये मिलते हैं। अभी भी ग्रामीणों को वही दर मिल रहा है।
रैट माइनिंग में हो चुकी है कई लोगों की मौत
तस्करों से मिलने वाले 500 रुपये की खातिर कई ग्रामीण जान जोखिम में डालकर पन्ना उत्खनन करते हैं। 21 सितंबर 2012 को यहां एक हादसा हुआ जिसमें इसी रैट माइनिंग के दौरान दो होल के एक साथ धंस जाने से तीन ग्रामीणों की मौत हो गयी। उसके बाद ही यहां हो रहे पन्ना खनन के बारे में खान एवं भूतत्त्व विभाग, झारखंड सरकार को जानकारी मिली और खनन विभाग के साथ संपर्क कर पुलिस की मदद से यहां पन्ना तस्करों का पता लगाकर उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की गयी।
मयुरभंज को बनाया ठिकाना
जब इस इलाके में पुलिस ने कार्रवाई की तो पन्ना तस्करों ने ग्रामीणों को ही डीलर के रूप में खड़ा किया और उनसे संपर्क के लिए ओडिशा के मयुरभंज को अपना ठिकाना बनाया। स्थानीय डीलर ग्रामीणों से पन्ना लेकर मयुरभंज के होटलों में बैठे बड़े तस्करों तक जाने लगे। इसके लिए वर्ष 2014 में ओडिशा और झारखंड पुलिस की संयुक्त बैठक भी हुई लेकिन इससे भी अंकुश नहीं लग सका।
अब तक 38 को जेल, सात करोड़ का पन्ना जब्त
आज भी हड़ियान और उसके आसपास में कुछ ग्रामीण ऐसे हैं जिनका संपर्क पन्ना तस्करों से है। ये लोग लालच में अपने गांव का ही खजाना बेच रहे हैं। पूर्वी सिंहभूम में पन्ना की तस्करी में अभी तक 38 लोगों को 10 साल में पुलिस ने जेल भेजा है और लगभग सात करोड़ का पन्ना भी जब्त किया है। लेकिन इस धंधे पर अब तक लगाम नहीं लगा। इसी वर्ष जुलाई महीने में उत्तरप्रदेश के एक पन्ना तस्कर को 125 ग्राम पन्ना के साथ पुलिस ने पकड़ा था।
चल रहा सर्वे
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम इन दिनों गुड़ाबांदा में 25 वर्ग किलोमीटर के दायरे में ड्रोन से सर्वे कर रही है। यहां की पहाड़ियों पर 500 मीटर की ऊंचाई तक पन्ना का भंडार मिलने की संभावना जतायी जा रही है। यह भी बताया जा रहा है कि यहां उपलब्ध पन्ने की क्वालिटी विश्वस्तरीय है। इसलिए इसकी कीमत भी काफी अच्छी होगी।