छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जन-जीवन में रचा-बसा खेती-किसानी से जुड़ा पहला त्यौहार है, हरेली। सावन मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह त्यौहार वास्तव में प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण का लोकपर्व है। हरेली के दिन किसान अच्छी फसल की कामना के साथ धरती माता का सभी प्राणियों केे भरण-पोषण के लिए आभार व्यक्त करते हैं। सभी लोग बारिश के आगमन के साथ चारो ओर बिखरी हरियाली और नई फसल का उत्साह से स्वागत करते हैं।
कुरूद जनपद अध्यक्ष शारदा साहू ने हरेली की बधाई देते हुए कहा कि हरेली पर्व को छोटे से बड़े तक सभी उत्साह और उमंग से मनाते हैैं। गांवों में हरेली के दिन नागर, गैती, कुदाली, फावड़ा समेत खेती-किसानी से जुड़े सभी औजारों, खेतों और गोधन की पूजा की जाती है। सभी घरों में चीला, गुलगुल भजिया का प्रसाद बनाया जाता है। पूजा-अर्चना के बाद गांव के चौक-चौराहों में लोगों को जुटना शुरू हो जाता है। यहां गेड़ी दौड़, नारियल फेक, मटकी फोड़, रस्साकशी जैसी प्रतियोगिताएं देर तक चलती रहती हैं।
शारदा साहू ने बताया कि लोग पारंपरिक तरीके से गेड़ी चढ़कर खुशियां मनाते हैं। उन्होंने बताया कि बरसात के दिनों में पानी और कीचड़ से बचने के लिए गेड़ी चढ़ने का प्रचलन रहा है, जो समय के साथ परम्परा में परिवर्तित हो गया। इस अवसर पर किया जाने वाला गेड़ी लोक नृत्य भी छत्तीसगढ़ की पुरातन संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है। हरेली में लोहारों द्वारा घर के मुख्य दरवाजे पर कील ठोककर और नीम की पत्तियां लगाने का रिवाज है। मान्यता है कि इससे घर-परिवार अनिष्ट से बचे रहते हैं।
उन्होंने बताया कि इस साल से प्रदेश के स्कूलों में हरेली तिहार को विशेष रूप से मनाने की शुरूआत की जा रही है। इससे बच्चे न सिर्फ अपनी कृषि संस्कृति को समझेंगे, उसका सक्रिय हिस्सा बनेंगे बल्कि अपनी संस्कृति के मूल भाव को आत्मसात भी कर सकेंगे। साथ ही स्कूलों में गेड़ी दौड़, वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण पर संगोष्ठी जैसे आयोजनों से बच्चों में अपनी संस्कृति और प्रकृति के प्रति प्रेम विकसित होगा।
