रायगढ़। आज के इस दौर में जब निष्पक्ष और निभिक पत्रकारिता को लेकर सवाल खड़े होनें लगे है ऐसे में निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता की मशाल को मिशन की तरह मान कर चलने वाले दैनिक कुशाग्रता के संस्थापक व सम्पादक स्व.विनोद छापरिया की लेखनी को उनकी पुण्यतिथि पर याद करना ही उन्हें सही अर्थो में स्मरानांजलि व आदरांजली होगी द्य वर्ष 2003 में रायगढ़ से प्रकाशित दैनिक कुशाग्रता के संपादक स्व. विनोद छापरिया ने संघर्षो के साये में रहते हुए युवाकाल मे ही पत्रकारिता को मिशन के रूप मैं न केवल आत्मसात करते हुए अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुवात की बल्कि ताउम्र अपने इस मिशन को आगे भी बढाया अपने पत्रकारिता के दौर मैं उन्होंने ऐसी मिसाल कायम की जो आज के युवा पत्रकारों के लिए ना केवल प्रेरणा बन कर उनका मार्ग प्रसस्त कर रही हैं बल्कि रायगढ़ की पत्रकारिता को एक नए आयाम पर लेजाने मैं सक्षम हैं
युवा विनोद ने अपनी बेबाक लेखनी से रायगढ़ की पत्रकारिता मैं अमिट छाप छोड़ी हैं किशोरअवस्था से ही उन्होंने स्वछ पत्रकारिता को न केवल अपने जीवन मैं अपनाया बल्कि अपने पुरे जीवन मैं अजातशत्रु की तरह रहे जिनके सब अपने थे और दुश्मन कोई नहीं शायद यही कारण था की सब उन्हें चाहते थे और सब उनके अपने थे
स्व विनोद छापरिया ने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुवात वर्ष 1986 मैं दैनिक जनकर्म से की जनकर्म से जुड़े रहने के दौरान जमीनी स्तर पर अनुभव की याथि बनाने के लिए उन्होंने अपने अभिन मित्र और पत्रकार स्व शशिकान्त शर्मा के साथ मिलकर रायगढ़ के गली कुचो मैं पेपर तक बांटे और दैनिक अखबार की आतंरिक गतिविधियों को गहरि तक समझा इस दौरान उन्होंने अपनी लेखनी से समाज को भी दिशा दिखाई और उनकी लिखी खबरे कई बार अखबार की न केवल सुर्खिया बनी बल्कि शहर क्या जिले मैं लोगों ने उनकी बेबाक लेखनी को भी सराहा
जाहिर से बात हैं की हर पत्रकार के लिए संपादक के निचे रहकर काम करने के लिए कुछ बंदिशे होती हैं जबकि विनोद पत्रकारिता के आश्मान पर स्वछंद परवाज करने की इछा रखते थे इसलिए आखिरकार वर्ष 2003 मैं उन्होंने दैनिक कुशाग्रता की शुरूवातकी करीब 15 वर्षो तक दैनिक कुशाग्रता के संपादक के रूप मैं काम करने के बाद 31 जनवरी 2018 को उन्होंने गोलोक गमन किया ।