क्या है चंद्रमा के भीतर? वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा

by Kakajee News

वैज्ञानिकों के लिए चंद्रमा के अंदर की संरचना हमेशा से एक पहेली बनी थी। इस पर काफी अध्ययन किया गया है, क्योंकि चंद्रमा की संरचना के संबंध धरती के इतिहास से भी जुड़े हैं। वैज्ञानिकों को हमेशा यह उम्मीद रही कि चंद्रमा की संरचना से चांद के साथ धरती और सौरमंडल के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है। वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया है, जिसके नतीजों के बाद अब उनका मानना है कि इस बहस पर विराम लगना चाहिए कि चंद्रमा के अंदर का क्रोड़ ठोस है या फिर पिघला है।

 

आंतरिक संरचना के बारे में कैसे मिलती है जानकारी
सौरमंडल के खगोलीय पिंडों की आंतरिक संरचना के बारे में भूकंपीय आंकड़ों के माध्यम से पता लगाया जाता है। आंतरिक सक्रियता की वजह से आने वाले भूकंप से ध्वनि तरंगे पैदा होती है। इनसे चंद्रमा और धरती जैसे पिंडों के भीतर के पदार्थों के बारे में जानकारी मिल सकती है। इनकी मदद से वैज्ञानिक पिंड का विस्तृत आंतरिक नक्शा बनाते हैं।

 

अपोलो अभियान से मिले थे आकड़े
नासा के अपोलो अभियान से चंद्रमा की भूकंपीय गतिविधियों के आंकड़े मिले थे। उनसे चांद के आंतरिक क्रोड़ की अवस्था कैसी है? इसकी जानकारी नहीं मिल सकती थी, क्योंकि बहुत ही कमजोर थे। इसमें बहने वाला क्रोड़ है यह पता लगा था, लेकिन इसके आसपास क्या है यह बहस का विषय बना रहा।

 

समस्या का हल
परेशानी यह थी ठोस क्रोड़ और तरल क्रोड़ वाले दोनों ही मॉडल अपोलो अभियानों के दौरान मिले आंकड़ों के साथ तालमेल बना रहे थे। ब्रियॉड और उनकी टीम ने स्थिति स्पष्ट करने के लिए अंतरिक्ष अभियानों और लूनार लेजर रेंजिंग प्रयोगों से जुटाए गए आंकड़ों का अध्ययन किया। इससे वैज्ञानिक यह पता करने में सफल रहे कि चंद्रमा का क्रोड़ ठोस है और उसका घनत्व लोहे जैसा है।

 

नए अध्ययन में क्या मिली जानकारी?
इस अध्ययन को करने वाली वैज्ञानिकों की टीम का कहना है कि अध्ययन के नतीजों से चंद्रमा की मैग्नेटिक फील्ड़ के विकास पर सवाल खड़े होते हैं। फ्रांस के फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के खगोलविद आर्थर ब्रियॉड इस अध्ययन को करने वाली टीम के प्रमुख हैं। टीम को चंद्रमा के आंतरिक क्रोड़ के अस्तित्व की जानकारी से यह पता चला है। इनसे चांद पर सौरमंडल के पहले एक अरब साल तक उल्कापिंडों की बारिश का भी पता चला, जिसका चांद के मेटल से संबंध था।
धरती के साथ गुरुत्व अंतरक्रिया की वजह से विकृति, पृथ्वी से दूरी में आने वाला अंतर और घतनत्व आदि गुणों का पता लगाने के लिए प्रयोग किया गया था। इसके बाद वैज्ञानिकों ने मॉडलिंग के माध्यम से अलग-अलग क्रोड़ों के बारे में जानकारी हासिल की और उनके नतीजों को अवलोकित आंकड़ों से मिला कर देखा। इसके बाद शोधकर्ताओं को बेहद रोचक जानकारी मिली।

कई प्रक्रियाओं की जा सकती है व्याख्या
शोधकर्ताओं को इस पड़ताल में जानकारी मिली है कि घना पदार्थ चंद्रमा के अंदर की तरफ जाने की कोशिश करता है, तो वहीं कम घना पदार्थ ऊपर की तरफ जाने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया से चंद्रमा के ज्वालामुखी क्षेत्रों में उपस्थित कुछ तत्वों की व्याख्या हो सकती है। चंद्रमा का क्रोड़ धरती के क्रोड़ की तरह है। इसमें बाहरी क्रोड़ तरल है और आंतरिक क्रोड़ ठोस है। चांद का क्रोड़ पूरे उपग्रह का 15 प्रतिशत भाग है।
शोधकर्ताओं को पड़ताल में जानकारी मिली की चांद के क्रोड़ का घनत्व 7822 किलोग्राम प्रति घन मीटर है। यह लोहे के घनत्व के करीब है। खास बात यह है कि नासा के मार्शल ग्रह वैज्ञानिक रेने वेबर की टीम को 2011 में ऐसे नतीजे मिले थे। ब्रियॉड और उनकी टीम ने भी कहा कि उनकी पड़ताल के नतीजे भी इसी की पुष्टि करते हैं। उनका कहना है कि फिर से चंद्रमा पर इंसानों के पहुंचने के बाद इसकी पुष्टि हो जाएगी।

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