बीच सड़क पर दिल न दे जाए धोखा, वाहन चालकों के लिए जरूरी है स्वास्थ्य की नियमित जांच

by Kakajee News

सड़क पार करना और किनारे बने फुटपाथ पर भी चलना क्या अब सुरक्षित नहीं रह गया है? ऐसे में जैब्रा क्रॉसिंग को कैसे सुरक्षित माना जा सकता है? ये सवाल इन दिनों लोगों के मन में उठ रहे हैं, क्योंकि बीते कुछ वक्त में ऐसे कुछ हादसे हुए हैं, जब बीच सड़क पर वाहन चालक अचानक नियंत्रण खो बैठा। हालांकि ऐसा उसने किसी साजिश के तहत या जान-बूझकर नहीं किया। जब वाहन इधर-उधर टकराते हुए रुका, तो पता चला कि ड्राइवर की या तो सांसें थम चुकी हैं या वह बेहोश हो चुका है।

ऐसी घटनाएं इन दिनों सुर्खियों में हैं। राजस्थान के नागौर में एक शोभायात्रा के दौरान सड़क से गुजर रही बोलेरो के ड्राइवर को हार्ट अटैक होने से वाहन बेकाबू हो गया और कई लोग कुचले गए। इलाज के दौरान ड्राइवर की मौत हो गई। 18 दिसंबर, 2023 को प्रतापगढ़ में ड्राइवर को अचानक हार्ट अटैक आया, जिससे सड़क पर चलती बालू लदी ट्रैक्टर-ट्रॉली पलट गई। ड्राइवर समेत दो लोगों की वहीं मौत हो गई। 4 नवंबर, 2023 को दिल्ली के रोहिणी में डीटीसी बस हादसा हुआ। सीसीटीवी से पता चला कि ड्राइवर को हार्ट अटैक आया था और उसने गिरते हुए भी बस को रोकने की नाकाम कोशिशें कीं। लेकिन रफ्तार में चल रही बस फुटपाथ पर बाइकों को रौंदते हुए बढ़ती रही।

14 दिसंबर, 2023 को देवरिया में एक गांव से बोलेरो में बरातियों को लेकर ड्राइवर मनोज यादव बस्ती की ओर निकला। अचानक उसे हार्ट अटैक आया, तो उसने गाड़ी रोक दी। लेकिन उसे जब अस्पताल पहुंचाया गया, तो डॉक्टरों ने मृत करार दिया। राजस्थान के जैसलमेर में 4 नवंबर, 2023 को बस ड्राइवर की हार्ट अटैक से तत्काल मौत हो गई। गनीमत रही कि कंडक्टर ने फुर्ती दिखाकर बस रोक ली। मध्य प्रदेश के जबलपुर में 3 दिसंबर, 2022 को शहर के बीचों-बीच सिटी बस चला रहे ड्राइवर हरदेव सिंह को हार्ट अटैक आया और वहीं मौत हो गई। उस हादसे में छह राहगीर घायल हो गए।

विशेषज्ञ हाल के दिनों में बढ़ते हार्ट अटैक में कोरोना की भूमिका बता रहे हैं। एक प्रख्यात अमेरिकी संस्थान की रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती है कि जिनमें कोरोना के हल्के लक्षण मिले, उनमें भी मौत का जोखिम 20 प्रतिशत बढ़ा। कोरोना के बाद दुनिया भर में हार्ट अटैक के मामले तेजी से बढ़े हैं। आज कहीं भी और किसी भी उम्र के लोगों को हार्ट अटैक हो रहा है। हार्ट अटैक से मौतें पहले भी होती थीं, लेकिन इस तरह नहीं। पहले अधिकतर बड़े-बूढ़े या बीमार इसके शिकार होते थे।

सड़क पर अचानक वाहन चलाते वक्त हार्ट अटैक से हुई मौतें चिंताजनक हैं। इस पर सरकार को चेतना होगा। ऐसी स्थिति में वाहन को कैसे नियंत्रित किया जाए और ड्राइवर के अलावा अन्य लोगों के साथ होने वाली दुर्घटना को कैसे रोका जाए, यह एक बड़ी चुनौती है। वाहन पर काबू करने की कोई पहल भी समझ में नहीं आती। लगता है, परिवहन विभाग इस नई चुनौती से बेसुध है। लाइसेंस जारी करने से पहले ड्राइवर की आंखों की जांच का प्रावधान है, लेकिन शारीरिक स्थिति की नियमित जांच नहीं होती।

आज चिकित्सा विज्ञान काफी तरक्की कर चुका है। सेहत की छोटी-छोटी जांच से बड़े-बड़े खतरे भांपना बहुत आसान है। यदि ड्राइवर को हार्ट अटैक का शिकार होने से पहले ही इसका संकेत मिल जाए, तो वह अपनी और दूसरों की जान जोखिम में क्यों डालेगा? इसलिए ड्राइवरों की शारीरिक स्थिति की नियमित जांच होनी चाहिए। वास्तव में होना तो यह चाहिए कि टोल नाकों की तर्ज पर स्वास्थ्य नाके भी बनें, जहां अत्याधुनिक, सक्षम व उन्नत मशीनें और विशेषज्ञ तैनात रहें, जो ड्राइवरों की जांच कर ताजा रिपोर्ट ड्राइवर को देने के साथ उसे लाइसेंस की चिप में ट्रांसफर करे। हर ड्राइवर का हेल्थ डाटा कहीं भी, कभी भी एक्सेस किया जा सके और सूचना क्षेत्र सहित रूट के स्वास्थ्य विभाग को भेजी जाए, ताकि समय-समय पर जांच-परख कर सलाह, उपाय व दवाएं देकर लाइसेंस में उसकी जानकारी अपडेट की जा सके। इससे एक तो ड्राइवर की सेहत पर सतत चौकसी होगी और दूसरे, वाहन चलाते वक्त हार्ट अटैक का जोखिम भी कम होगा।

काश, ‘दुर्घटना से देर भली’ का नारा अलापने वाले सरकारी महकमे, समाजसेवी संगठन, नुमाइंदे और सरकारें उस गरीब ड्राइवर की सेहत को लेकर भी फिक्रमंद होतीं, जो हर नाके पर टैक्स अदा कर सरकारी खजाने को भरता है, तो कितना अच्छा होता!

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