लाइसेंसी शस्त्रों की दुकानें तेजी के साथ बंद हो रहीं हैं। कभी 61 दुकानें थीं लेकिन आज महज 22 ही रह गईं हैं। इनमें भी कई दुकानें ऐसी हैं जिन्होंने एक हिस्से में बंदूक और कारतूस रख रखे हैं जबकि बाकी में डिपार्टमेंटल स्टोर खोलकर टॉफी और लेमनचूस बेच रहे हैं। शस्त्रों के कारोबार में जिस दुकान की गिनती बड़े ब्रांड के रूप में होती थी वहां मेडिकल स्टोर चल रहा है। एक शस्त्र विक्रेता तो असलहों के साथ साथ मशीन लगाकर फोटो स्टेट भी करने लगे हैं।
अगर शस्त्र कारोबार से जुड़े लोगों की मानें तो एक दुकान पर तीन से चार लोगों को काम मिलता था। लेकिन शस्त्रों के नए लाइसेंस न जारी होने से लगातार बंद हो रहीं दुकानों से जुड़े लोग भी बेरोजगार हो रहे हैं। 39 दुकानें पिछले वर्षों में बंद हो चुकी हैं। केवल बाइस दुकानें ही इस समय चल रही हैं। इन दुकानों ने भी पिछले कई साल से एक बंदूक तक नहीं बेची है। ऐसे में शस्त्र विक्रेता तेजी के साथ दूसरे कारोबार की तरफ बढ़ रहे हैं।
हमने बड़े चाव से ढाई दशक पहले यह शस्त्रों की दुकान शुरू की थी। मगर पिछले तीन वर्ष में जो हालात बने, उससे परिवार चलाना मुश्किल हो गया। इसलिए अब दुकान में डिपार्टमेंटल स्टोर शुरू किया है। कुछ माल किराये पर जमा है। जल्द लाइसेंस सरेंडर करेंगे। -गिर्राज सिंह, पन्नालाल गन हाउस शहंशाह तिराहा
इस कारोबार से तो खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है। ऐसे में उन्होंने तो कपड़े की दुकान खोल ली है। जल्द ही शस्त्र की दुकान बंद करके पूरी तरह से कपड़े के कारोबार में ही हाथ आजमाएंगे।-प्रदीप पाठक, पाठक गन हाउस
हमारी शस्त्रों की दुकान दो दशक पुरानी है। पहले असलहों के साथ कारतूस भी खूब बिका करते थे। लेकिन अब कारतूस बिक्री के लिए इतने नियम आ गए कि लाइसेंसी शस्त्र धारक कारतूस तक नहीं खरीद रहे। लिहाजा उन्होंने इसी परिसर में मेडिकल स्टोर खोल लिया है।-नरेंद्र सिंह चौहान,अभिलाश गन हाउस
आयुध नियमों में बदलाव के बाद से कारतूस की खरीद में नियम कड़े हुए हैं। उसी नियम से कारतूस बिक सकते हैं।-पंकज कुमार, एडीएम प्रशासन
90 शस्त्र जमा, 2007 से ग्राहक लेने नहीं आये
इस विषय में गूलर रोड स्थित पाठक गन हाउस के संचालक प्रदीप पाठक बताते हैं कि वे फुटकर के साथ थोक का भी काम करते हैं। इसलिए अभी इस धंधे में हैं। बात अगर जमा लाइसेंसी शस्त्रों की करें तो उनके यहां 90 शस्त्र दस-दस वर्ष से अधिक समय से जमा हैं। दो सौ रुपये प्रति माह किराये पर ये शस्त्र जमा हैं। कोई लेने नहीं आया। एक रिवाल्वर तो 2007 से जमा है। बात अगर हथियार बिक्री की करें तो नए लाइसेंस बन नहीं रहे। एक नाली व दोनाली बंदूकों की बिक्री पूरी तरह बंद है। उनकी कीमतों की भी हालत दयनीय है। किराये पर जो रखी हैं, उनकी कीमत से ज्यादा किराया हो गया है, इसलिए उन्हें लोग लेने नहीं आ रहे। अब दूसरे व्यापार की ओर जाना सोच रहे हैं। दोदपुर इंपीरियल गन हाउस के स्वामी अब्दुल्ला कबीर शेख कहते हैं कि जब लाइसेंस ही बनने बंद हो गए तो शस्त्रों की बिक्री कहां से होगी।
शस्त्रों के कारोबार में दूर दूर तक पहचान रखते थे यह नाम
अलीगढ़ के शस्त्र विक्रेताओं के अनुसार शहर में पुराने दौर के कई बड़े नाम थे। जिनमें सुरेश गन हाउस, श्रीराम गन हाउस, सिंह गन हाउस। इनके यहां से हर महीने बड़ी संख्या में शस्त्रों की बिक्री हुआ करती थी। लेकिन आज कारोबार पूरी तरह से सिमट चुका है।