पिता की हालत गंभीर है। वेंटिलेटर पर हैं लेकिन उनका कोई हाल बेटे को नहीं मिल पा रहा था। ऐसे में बेटे ने डीआरडीओ कोविड अस्पताल में वॉर्डब्वॉय की नौकरी हासिल कर ली। आठ की बजाए 16 घंटे काम करता है लेकिन बीच-बीच में अपने पिता को देखकर तसल्ली कर लेता है कि वह ठीक हैं।
लखनऊ के कुर्सी रोड पर रहने वाले व्यापारी 51 वर्षीय सुरेश प्रसाद को सांस लेने में तकलीफ के बाद डीआरडीओ अस्थायी कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया था। भीतर जाने के बाद उनका फोन बंद हो गया। बाहर बेटा महेश (बदला हुआ नाम) परेशान हो गया। वह एक निजी कॉलेज का छात्र है। दो दिन तक रैन बसेरे में रुक कर पिता के स्वास्थ्य की जानकारी हासिल करने का प्रयास करता रहा लेकिन कुछ पता नहीं चला। इसके बाद एक दिन उसको पूछता हुआ एक सफाई कर्मचारी आया। बताया कि उसके पिता सुरेश ने संदेश भेजा है कि यहां अकेलापन है कोई देखने वाला नहीं किसी भी तरह अस्पताल से छुट्टी दिला दो। इतना सुनते ही वह बिलख पड़ा। कई स्वयं सेवी संगठनों से मदद मांगी कि पिता को डिस्चार्ज करा दें लेकिन सफलता नहीं मिली। तभी उसे पता चला कि अस्पताल में वार्डब्वॉय की नौकरी है। तमाम कोशिशों के बाद उसे नौकरी मिल गई। वह नहीं चाहता था कि इस बारे में किसी को पता चले। इसलिए पिता के पास भी उतनी ही देर रुकता है जितना अन्य मरीजों के पास। दोहरी पालियों में काम कर रहा है जिससे पिता के स्वास्थ्य पर नजर रख सके।
सर कुछ करिए, किसी तरह पापा बच जाएं
फोन पर रिपोर्टर से बात करते हुए सुरेश प्रसाद का बेटा फूट-फूटकर रोने लगा। बार बार एक ही वाक्य दोहरा रहा था…सर किसी भी तरह पापा को बचा लीजिए….कुछ समय पहले ही खेत बेचे थे….उसका पैसा रखा है…किसी तरह उनकी जान बचा लीजिए। जिसको भी जानते हैं उनसे कहिए…प्लीज सर।