जन्म जयंती पर विशेष ……
अघोरेश्वर भगवान राम का जीवन राष्ट्र कल्याण को समर्पित रहा अघोर पंथ के प्रवर्तक भगवान राम ने दशको पुर्व ही मानव जाति के कल्याण हेतु जिन सूत्रों को बताया आज उनकी प्रासंगिकता सही साबित हो रही है l वे युग पुरुष थे l उनके बताए मार्ग के अनुशरण से जीवन मे लक्ष्य सहजता से प्राप्त हो सकता है l 12 सिंतम्बर 1937 बिहार राज्य के गुंडी ग्राम में बाबु बैजनाथ व लखराजी देवी के घर।उनके इकलौते पुत्र के रूप में भगवान अघोरेश्वर राम का अवतरण हुआ l सात साल की उम्र में घर का परित्याग करने वाले भगवान राम14 वर्ष की अल्पायु में वाराणसी स्थित क्रीम कुंड पहुंचे और महाराज श्री राजेश्वर राम जी से दीक्षा हासिल की l इस दीक्षा के पश्चात उंन्होने जीवन पर्यंत अघोर पंथ का पालन किया l निरन्तर भ्रमण के दौरान विन्ध्य की पहाड़ियों में कठोर तपस्या के बाद महाराज श्री दत्तात्रेय का आशीवार्द हासिल किया l अघोरेश्वर भगवान राम ने अघोर परंपरा के जरिये ऐसी परिपाटी की शुरुवात करना चाहते थे जिससे मानव जीवन के साथ साथ राष्ट्र कल्याण भी हो सके ll मानवता की सेवा के लिए 24 वर्ष की उम्र में उन्होंने 29 सिंतम्बर 1961 को श्री सर्वेश्वरी समूह के स्थापना की नींव रखी जिसके जरिये पीड़ित मानव की सेवा शुरू की गई l इस संस्था के जरिये उन्होंने लाईलाज कुष्ठ रोग का निदान किया l इस संस्था की 130 शाखाएं देश विदेश में फैली हुई है l के वो दौर था जब कुष्ठ रोग लाइलाज था व इससे पीड़ित व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार हो जाता था अघोरेश्वर ने कुष्ठ रोग से पीड़ितों एवं बहिष्कृतो को गले से लगाकर स्वयं उनका इलाज किया l कृष्ठ पीड़ितों की यह अदभुत सेवा ग्रीनिज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है l अपने ट्रस्ट को गतिशील बनाये रखने के लिए उन्नीस सूत्रीय सिद्धान्त सुनिश्चित किये l भगवान राम के स्नेही शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम जी द्वारा स्थापित किये गए सभी आश्रमो की बुनियाद इन्ही 19 सूत्रीय उद्देश्यों पर टिकी हुई है l उनके लौकिक गुरु महाराज श्री राजेश्वर राम जी ने क्रीम कुंड के महंत पद पर आसीन होने को कहा लेकिन राष्ट्र सेवा के व्रत पालन करने की उद्देश्य से यह पद अस्वीकार कर दिया l समाधी से पहले अघोरेश्वर ने अपने समस्त संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए एवं कार्यक्रमों को सुचारू रूप से सुव्यवस्थित क्रियान्वित होते रहे इसलिए अपने चार प्रमुख शिष्यों को अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अपना उत्तराधिकारी घोषित कर उनका अभिषेक किया । 29 नवम्बर 1992 में समाधि तो ले ली लेकिन अपने पीछे अघोर पंथ का ऐसा सुगम मार्ग बना दिया जिसका अनुकरण उनके उत्तराधिकारी शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम जी कर रहे है l अघोरेश्वर के अनुयाईयों में जात पात अमीरी गरीबी ऊँच नीच का भेद नही है l अघोरश्वर का अवतरण मानव समाज को जीने का सहज मार्ग बताने के लिए हुआ था l वे आजीवन गरीबो शोषितों पीड़ितों असहायों दलितों कुष्ठ रोगियों की सेवा में जुटे रहे l अघोराचार्य महाराज श्री कीनाराम जी ने इस पंथ को समाज से जोड़ने की नीव ही रखी लेकिन उस पर पुल बनाने का कार्य अघोरेश्वर ने किया l अपने जीवन सफर में नेपाल अफगानिस्तान ईराक ईरान सऊदी अरब मैक्सिको अमेरिका की यात्राएं की l हर यात्रा का उद्देश्य अघोर पंथ के हथियार से मानव जीवन के आडम्बर की जड़ो को काटना ही रहा l औघड़ शब्द मनुष्य के लिए भय का कारण न बने इसके निदान के लिए देश काल की परिस्थिति को देखते हुए समाज के सामने ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया जिससे बहुत ही निरथर्क भ्रांतियां दूर हो गई l अघोर परंपरा को रूढ़िवादी बेड़ियों से मुक्त कराने के साथ आधुनिक प्रगतिशील स्वरूप देने का श्रेय बीसवीं सदी के संतों में अघोरश्वर भगवान राम को जाता है l उन्होंने समाज के मन मे औघड़ के प्रति भय की जगह श्रद्धा का बीजारोपण कर दिया l विधि के विधान को आत्मसात करने वाले भगवान राम ने नशाखोरी को समाज की जड़ो को खोखला करने का कारण बताया l
कर्मकांड की परिपाटी की बजाय वे व्यवहारिक ज्ञान को प्राथमिकता देते रहे l अनेक संतो महात्माओं ने पांडित्य प्रवचन के जरिये सामाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया लेकिन अघोरश्वर ने अध्यात्म और दर्शन के गूढ़ तत्वों को व्यवहारिक व तर्क युक्ति संगत बनाकर आम जनमानस के सामने कुछ इस तरिके से रखा कि समाज इन बातों को सहजता से समझकर अपने व्यवहारिक जीवन मे उतार सके l उन्होंने समाज को बताया कि आवश्कता से अधिक संग्रह दुख का कारण बन जाता है l शादी विवाह में लेन देन दहेज को खरीदी बिक्री बताते हुए कहा कि दहेज की बुनियाद पर खड़े रिश्तो के महल बाहर से भव्य हो लेकिन अंदर से खोखले होते है l आत्मा को परमात्मा का अंश बताते हुए इस शरीर को आत्मा के लिए मन्दिर बताया ।