मां के पेट में पल रहे 400 गर्भस्थ बच्चों पर संकट, जानिए वजह

by Kakajee News

जीका वायरस से गर्भ में पल रहे भ्रूण को बचाने को लेकर स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के अधिकारी चिंता में हैं। गर्भस्थ में जन्मजात विकृतियों वाली बीमारियां होने का खतरा रहता है। इलाके की मैपिंग से पता चला है कि ऐसी लगभग 400 गर्भवती महिलाएं तीन किलोमीटर के दायरे में हैं जिन्हें बचाना बड़ी चुनौती है।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने गर्भवती महिलाओं के स्क्रीनिंग का माइक्रोप्लान तैयार किया है। इसके तहत आशा और एनएनएम से जानकारी जुटाकरा उनके घरों तक पहुंचा जा रहा है। चिकित्साधिकारी खुद परीक्षण कर रहे हैं। सलाह भी दी जा रही कि एंटीनेटल चेकअप के लिए स्वास्थ्य सेंटर पर जाएं। दरअसल जीका का संक्रमण बच्चों के ब्रेन और नर्वस सिस्टम के विकास के समय सबसे अधिक पड़ता है इसलिए इससे जुड़ी बीमारियां घेर लेती हैं और जन्म लेने वाला बच्चा एक तरह से बेहद जटिल दिव्यांगता से पीड़ित होता है। मंडल के अपर निदेशक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण डॉ. जीके मिश्र के मुताबिक जब तक जीका केस मिलते जाएंगे और इलाका संक्रमण से पूरी तरह फ्री नहीं होता तब तक सभी गर्भवती महिलाओं को सावधानी बरतनी है। संक्रमण होने पर छह महीने या उससे अघिक वाली गर्भवती मांओं को किसी भी तरह की जटिलता का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाएं फोकस में हैं।

जीका से यह बीमारी जो सबसे अधिक घातक
माइक्रोसिफेली यानी ब्रेन का विकास रुक जाना या सिर छोटा हो जाना और गियॉन-बार्रे सिंड्रोम (जीबीएस) जिसमें नसों और मांसपेशियों से जुड़ी विकृतियां दो ऐसी प्रमुख बीमारियां हैं जो जीका के संक्रमण से होती है। इन दोनों बीमारियों में केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम या सीएनएस) जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी है वह प्रभावित होती है।

विशाख जी, डीएम कानपुर बताते हैं कि गर्भवती महिलाओं को लेकर अधिक चिंता है। इसके लिए आशा एएनएम और आंगनबाड़ी से मदद ली जा रही है। गर्भवती महिलाओं का ब्योरा लिया गया है। उनके सैंपल लिए जा रहे हैं। दो सप्ताह यानी दो चक्र में उनकी स्क्रीनिंग होगी। गर्भवती महिलाओं को सलाह दी जा रही है कि मच्छरों से बचें। घर में मच्छरों के सोर्स खत्म करें। मच्छरदानी लगाएं ताकि खतरे को रोका जा सके।

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