बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में 284 हाथी स्वच्छंद विचरण कर रहे है। हाथियों पर निगरानी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त तकनीक सेटेलाइट कालर आइडी को मानी जाती है। बारह हाथियों पर सेटेलाइट कालर आईडी लगाने की मंजूरी भारत सरकार से मिली है। आज की स्थिति में सिर्फ दो हाथियों पर सेटेलाइट कालर आइडी लगी हुई है।हाथियों की मौजूदगी को लेकर अक्षांश और देशांतर को आधार बना सामने आने वाली जानकारी ऐसी होती है कि वन कर्मचारी भी समझ नहीं पाते कि वास्तव में ये दोनों हाथी किस बस्ती के नजदीक वाले जंगल मे मौजूद है।
सबसे बड़ी बात है कि जिन दो हाथियों पर सेटेलाइट कालर आइडी लगी हुई है वे अकेले घूमने वाले हाथी है। 24 घन्टे में दो बार उनके लोकेशन की जानकारी ली जाती है। जब तक लोकेशन सामने आती है तब तक उनका मूवमेंट दूसरे क्षेत्र में हो जाता है। सेटेलाइट कालर आइडी से सामने आने वाली जानकारी के आधार पर हाथियों से जानमाल की सुरक्षा की कोई रणनीति ही नहीं बन पाती।हाथी प्रबंधन में सबसे उपयुक्त माने जाने वाले सेटेलाइट कालर आइडी का उपयोग छत्तीसगढ़ में हाथियों से बचाव के प्रबंधन में फेल होता नजर आ रहा है।
छत्तीसगढ़ में हाथी-मानव द्वंद को कम कर रहवास का अनुकूल माहौल बनाने की हर कोशिश अब तक विफल होती नजर आ रही है। हाथियों की बढ़ती संख्या और पड़ोसी राज्यों से हथियो की आवाजाही शुरु होने के बाद हाथी प्रबंधन में दूसरे राज्यों में कारगर सेटेलाइट कालर आइडी को सर्वाधिक उपयोगी माना गया था।छत्तीसगढ़ में हाथियों पर कालरिंग की शुरुवात सरगुजा वनवृत्त से की गई थी। भारत सरकार से बारह हाथियों पर कालरिंग की मिली अनुमति के बाद सरगुजा वनवृत्त के राजपुर वन परिक्षेत्र के रेवतपुर में सबसे पहले बहरादेव हाथी पर कालरिंग की गई।
भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की मदद से मध्य भारत मे पहली बार ऐसी कालरिंग की तकनीक अपनाई गई जिसे बेहद कारगर माना गया। अधिकारियों ने दावा किया था कि लगातार सेटेलाइट के जरिए हाथी की लोकेशन मिलेगी और उस अनुरूप उसके विचरण क्षेत्र में बचाव के उपाय किए जाएंगे।उसके बाद लगातार पांच हाथियों पर कालरिंग की गई। शुरुवाती दौर में जो जानकारी ली जाती थी वह छह- छह घण्टे में गांव के नजदीक की आती थी। वर्तमान में अक्षांश, देशांतर को आधार बनाकर ऐसी जानकारी सामने आती है जिससे जानकर भी हाथी का स्पष्ट लोकेशन नहीं बता सकते। सभी हाथियों पर लगी कालर आईडी गिर चुकी है।बहरादेव पर दूसरी बार कालरिंग की गई है।यह सरगुजा वनवृत्त में विचरण करने वाला हाथी है।कुछ महीने पहले बिलासपुर वनवृत्त के एक हाथी पर कालरिंग की गई है। स्वयं की सुविधा से इस हाथी पर कालरिंग की गई थी इसलिए इसका नामकरण प्रथम कर दिया गया है।दस अन्य हाथियों पर भी कालरिंग की अनुमति है लेकिन छत्तीसगढ़ में भारतीय वन्य जीव संस्थान के विशेषज्ञों के कामकाज को लेकर उठाए गए सवाल के बाद अन्य हाथियों पर कालरिंग की सुगबुगाहट भी नहीं हो रही है। दक्षिण अफ्रीका में निर्मित सेटेलाइट कालर आईडी का उपयोग यहां किया गया है। वर्तमान में दो सौ चौरासी हाथी हैं, लेकिन नाम के लिए सिर्फ दो हाथियों पर कालरिंग और सेटेलाइट के माध्यम से मिलने वाली लोकेशन की जानकारी से हाथियों से जानमाल की सुरक्षा का प्रबंध भी नहीं हो रहा है।