रायगढ़। ” इंसानों को इंसान से नफरत और जानवरों को इंसान से प्यार करते देखा है मैने” कहते हैं बेजुबान बोल नही सकते मगर प्यार की भाषा समझते हैं, और अगर आप उन्हें 10 प्रतिशत भी प्यार दें तो वो सारी जिंदगी उस प्यार को भूलेगा नही और आपको 100 गुना प्यार वापस देंगे और वफादारी में जान देने से भी पीछे नही हटते। ऐसी ही एक कहानी है शेरू और टफी की। मै पत्रकार हूं और मेरे जहन में अपनी सबसे प्यारी शेरनी के लिये लिखने के लिये इसलिये भी विवश हूं चूंकि उसने जन्म भी यही लिया और उसकी मौत भी यही हुई। इस दौरान उसने न जाने कितनी बार अपनी जान पर खेलकर मेरे शेरू के साथ अपनी जान दांव पर लगाकर हमारी रखवाली की। होता बहुत कम है और लोग सोंचते भी हैं कि आखिरकार ये बेजुबान जानवर क्या वाकई इतने वफादार होते हैं। यकीन मानिये ये सच है।
आज के बदलते दौर में जुबान वाले इंसान बार-बार पलटते हैं लेकिन जिन्हें आप थोडा सा प्यार देते हैं वे बेजुबान अपनी सारी जिंदगी वफादारी के साथ जीते हुए अपने मालिक पर कुर्बान कर देते हैं। मेरी श्रद्धांजलि उस टफी को जिसने न जाने कितने साल मेरे आफिस के, मेरी गाडी के, मेरे परिवार के, मेरे साथियों के साथ बिताये और हमेशा पूंछ हिलाती हुई वो बडे लाड से हमसे अलविदा हो गई।
आज हम आपको दो ऐसे पालतू कुत्तों की सच्ची कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी वफादारी निभाते हुए अपने मालिक पर आंच तक नही आने दिया और यही कोशिश में अपनी जान तक गवां चुके। तकरीबन 10 साल पहले बोईरदादर क्षेत्र के हिमाईया हाईट्स के पास स्थित नरेश शर्मा के आॅफिस में एक छोटे से लेबरा डाॅग का आगमन हुआ था। श्री शर्मा ने बचपन से ही उसका नाम शेरू रखा। शेरू कब बडा हुआ पता नही चला, खूब मस्ती करता और जमकर प्यार लूटाता था, पहले कुछ महीनों तो शेरू यहां अकेले ही रहता है मगर कुछ दिनों बाद वहां एक फिमेल डाॅगी ब्राउनी का भी आगमन हुआ। शेरू और ब्राउनी से आॅफिस में एक नया मेहमान का आगमन हुआ जिसका नाम टफी रखा गया था। दिखने में बहुत ही खतरनाक थी मगर इंसानों के प्रति जैसा नाम वैसा ही उसका रवैया था। कुछ दिनों बाद ब्राउनी की तबियत खराब हो गई और वो इस दुनिया से चली गई। इसके बाद शेरू और टफी ने आफिस की सुरक्षा की पूरी बागडोर ही सम्हाल ली।
बोईरदादर इंड्रटियल एरिया हिमालया हाईट्स क्षेत्र में आए दिन कई जहरीले जीव जंतु लोगों के घरों में निकलते रहते हैं लाजमी है नरेश शर्मा के आॅफिस में भी ये सिलसिला जारी रहा। एक दो बार नही बल्कि दर्जनों बार कई प्रकार के जहरीले सांप के अन्य जीव जंतु यहां निकले, परंतु हर बार शेरू और टफी ने अपनी जान की बाजी लगाकर उस खतरे को आॅफिस अंदर से घुसने से रोका और यही कोशिश में एक दिन शेरू ने अपनी जान दे दी। तकरीबन सवा 9 बजे का टाईम था जब आॅफिस में एक नाग घुसा और 15 मिनट तक शेरू टफी उस नाग से लड़ते रहे और शेरू ने नाग को दो टुकड़ो में विभाजित कर दिया। यह सब आॅफिस में लगे सीसीटीवी कैमरे में रिकार्ड भी हुआ था। परंतु साढ़े 9 बजे जहर लगने के बावजूद शेरू दोपहर साढ़े 12 तक अपने मालिक को एक नजर देखने के लिये जिंदा रहा और फिर अपने मालिक का चेहरा देख उसने भी दम तोड़ दिया। शेरू भले ही बेजुबान पालतू पशु था लेकिन वो एक फैमिली मेंबर की तरह था। उसे खोने का गम आज तक भुलाया नही जा सका था कि अब टफी भी आफिस को छोड़कर भगवान को प्यारी हो गई।
शेरू के जाने के बाद शेरनी टफी अकेले ही आफिस की सुरक्षा की बागडोर सम्हाल ली लेकिन उसे चेहरे में कई सालों तक शेरू के जाने का गम और उदास चेहरा देखा जाता था। लेकिन फिर भी अकेले ही टफी पहले की तरह आफिस में घुसने वाले हर खतरे को अपने मालिक तक पहुंचने से रोकने में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई। अफसोस है एक हादसे के बाद घायल होनें वाली टफी का 05 दिसंबर की शाम निधन हो गया। जिसने भी टफी को देखा वो जाना वह उसका कायल हो गया चूंकि हमारी शेरनी थी ऐसी जो मेरे पास आता था उसका स्वागत करने के लिये वह हमेशा आगे रहती थी आज वह नही है मेरे आॅफिस का आंगन, मेरे आॅफिस का वह सब सुना हो गया और हमेशा उसकी याद मेरी आत्मा में बसी रहेगी…
“अलविदा टफी बेटा…”
