भारत में थैलेसीमिया के 3 करोड़ साइलेंट कैरियर्स, जानिए क्या होती है ये बीमारी

by Kakajee News

भारत में थैलेसीमिया के लगभग 1,00,000 मरीज हैं इसके साथ ही हर साल 10,000 से 12,000 बच्चे इस ब्लड डिसऑर्डर (रक्त विकार) के साथ पैदा होते हैं.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) द्वारा किए गए एक हालिया सर्वे में कहा गया है कि भारत में लगभग 3 करोड़ लोग इस कंडीशन के साइलेंट कैरियर्स हैं. इनमें से अधिकांश कैरियर्स में अपने बच्चों में थैलेसीमिया पास करने की क्षमता होती है.

लगातार ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत को पूरा करने के लिए सेफ ब्लड की जरूरत होती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कई थैलेसीमिया मरीजों को ह्यूमन इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस (एचआईवी), हेपेटाइटिस, सिफलिस और मलेरिया जैसी खून से होने वाली बीमारी होने का खतरा होता है. इन्हें ट्रांसफ्यूजन ट्रांसमिसिबल इंफेक्शन (TTI) भी कहा जाता है. इसलिए, ब्लड ट्रांसफ्यूजन सुरक्षित और रोग मुक्त (डिजीज फ्री) है यह सुनिश्चित करने के लिए संरचनात्मक सुधारों को अपनाना महत्वपूर्ण है.

ब्लड कलेक्शन, स्टोरेज और डोनेट किए गए खून के इस्तेमाल के लिए कुछ प्रक्रियाओं का पालन जरूरी है. एचआईवी और दूसरी खून से होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए डोनेट किए गए खून का परीक्षण करना महत्वपूर्ण है, यह जहां इसके अभाव में होने वाली मौतों को रोक सकता है वहीं हेल्थकेयर सिस्टम पर पड़ने वाले बोझ को कम कर सकता है.

हेमोविजिलेंस में ब्लड कलेक्शन से लेकर डोनेट किए गए खून की जांच और रेसिपिएंट के साथ फोलो-अप तक पूरी प्रक्रिया की निगरानी शामिल है. सुरक्षित ब्लड ट्रांसफ्यूजन प्रैक्टिस को सुनिश्चित करने के लिए हेमोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया (HvPI) 2012 में लॉन्च किया गया था. यह कार्यक्रम 2014 में अंतर्राष्ट्रीय हेमोविजिलेंस नेटवर्क (IHN) का एक हिस्सा बन गया. वर्तमान में इस कार्यक्रम के तहत भारत में 226 ब्लड बैंक और निजी और सरकारी अस्पताल रजिस्टर्ड हैं.

आज एडवांस तकनीक के चलते खून में वायरस या बैक्टीरिया की उपस्थिति को प्रभावी ढंग से जांचने के लिए न्यूक्लिक एसिड परीक्षण (एनएटी) नामक एक ज्यादा संवेदनशील परीक्षण उपलब्ध है. ट्रेडिशनल एंजाइम-लिंक्ड इम्युनो सोरबेंट एसे (ELISA) तकनीक की तुलना में, NAT में कम समय लगता है, जिससे यह खून की सेफ्टी बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण बन जाता है.

खून की सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने के लिए थैलेसीमिया पेशेंट्स एडवोकेसी ग्रुप (TPAG) ने एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM) के सहयोग से एक गोलमेज बैठक का आयोजन किया. इस चर्चा के दौरान हेल्थ केयर एक्सपर्ट्स ने सेफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन को सुनिश्चित करने और नेशनल पॉलिसी में मौजूद अंतर को करने करने के लिए फैक्ट और अपना नजरिया साझा किया.

थैलेसीमिया के मामलों के भारी दबाव के बावजूद, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, खास तौर से ग्रामीण इलाकों में जिसकी वजह से वहां के मरीजों को सुरक्षित खून नहीं मिल पाता. हालांकि शहरों के कुछ अस्पतालों ने अपने वर्कफ्लो में NAT स्क्रीनिंग को शामिल किया है, लेकिन ये प्रैक्टिस अभी ग्रामीण क्षेत्रों तक नहीं पहुंच पाई हैं.

यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि थैलेसीमिया से पीड़ित हर मरीज को सही देखभाल और सुरक्षित खून तक पहुंच प्राप्त हो. इसलिए TTI के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए लेटेस्ट तकनीक को शामिल करने के लिए भारत को अपने ब्लड रेगुलेटरी फ्रेमवर्क पर फिर से विचार करना चाहिए.

सभी जरूरतमंदों के लिए सुरक्षित खून उपलब्ध कराने के लिए गवर्नमेंट, NGO और प्राइवेट स्टेकहोल्डर्स को एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है. वॉलंटरी ब्लड डोनेशन और स्टैंडर्ड स्क्रीनिंग टेक्नोलॉजी को एक व्यापक राष्ट्रीय नीति के हिस्से के रूप में लागू किया जाना चाहिए और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक कदम हो सकती है.

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