यहां के जंगल की रक्षा करते हैं देवता, पेड़ काटना तो दूर, जंगल से पशुओं का गोबर तक नही उठाते लोग……पढ़िये पूरी खबर

by Kakajee News

Desk News: कई वनों की रक्षा खुद देवता करते हैं। राजधानी शिमला से महज तीस किलोमीटर दूर ठियोग तहसील के चीची के जंगल की सुरक्षा का जिम्मा देवता जनोग ने स्थानीय लोगों को सौंपा है। इस वन में पेड़ काटना तो दूर, लोग जंगल से पशुओं का सूखा गोबर तक नहीं उठाते, क्योंकि इसमें देवदार की महीन पत्तियां चिपकी होती हैं। जैव विविधता बोर्ड की ओर से करवाए गए अध्ययन के अनुसार हिमाचल के 468 वन ऐसे हैं, जिनकी रक्षा देवता करते हैं।

इनमें सबसे अधिक 130 वन शिमला जिले में हैं, जबकि 109 वन कुल्लू जिले में हैं। इनमें से ज्यादातर वनों में लोग गिरी हुई सूखी लकड़ी तक नहीं उठाते। सदियों से यह मान्यता है कि ऐसा करने से देवता नाराज हो जाते हैं। नतीजतन अन्य वनों में जहां अवैध कटान हो रहा है, वहीं देव वन हरे-भरे हैं और लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। कई पेड़ों के तने इतने मोटे हैं कि इनमें देवदार के पांच-पांच सामान्य पेड़ समा जाएं।

इन वनों में पशु-पक्षी स्वच्छंद घूमते हैं, क्योंकि वन्य प्राणियों की हत्या यहां महापाप है। कुल्लू जिले में तो आधा दर्जन देव वन घोषितवन माफिया से वनों को बचाने के लिए कुल्लू जिले में तो लोगों ने वन विभाग से मिलकर देव नीति के अनुरूप आधा दर्जन देव वन घोषित किए। इसके बाद लकड़ी की तस्करी बंद हो गई। ऊना गगरेट के अंबोटा में शिवबाड़ी जंगल में तीन श्मशानघाट हैं। इस जंगल की लकड़ी सिर्फ शव दहन के लिए इस्तेमाल होती है। अन्य कार्य के लिए निषेध है।

देवता के बंधन के चलते देव वन ही सबसे सुरक्षित हैं। देवता ने जंगल की रक्षा का बंधन बनाया है, कहा है कि कोई मेरे जंगल को हानि नहीं पहुंचाएगा। लोग वचन से बंधे हैं, इसलिए न खुद हानि पहुंचाएंगे न किसी और को पहुंचाने देंगे।
– राजेंद्र प्रकाश राजन,अध्यक्ष, देवता कमेटी जनोग

 

देव वन सिर्फ जंगलों की रक्षा नहीं कर रहे, बल्कि यह वन जैव विविधता के भी संरक्षक हैं। बहुत सी लुप्त हो रही प्रजातियां देव वनों में सुरक्षित हैं। जैव विविधता बोर्ड की ओर से इसे लेकर एक विस्तृत अध्ययन करवाया जा चुका है, जिसमें प्रदेश में करीब 468 देव वनों की जानकारी मिली है।
– आरती गुप्ता, पूर्व निदेशक डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल में देव वन की प्रथा को आगे बढ़ाना बेहद जरूरी है। लोग इन वनों से प्रेम करते हैं, इन्हें अपना समझते हैं। अन्य वनों को भी देव वन समझने की जरूरत है। लोग वनों से अपनी जरूरत की वस्तुएं प्राप्त करें, लेकिन इन्हें नुकसान न पहुंचाएं।
– राजीव कुमार, प्रधान मुख्य वन अरण्यपाल

Related Posts