बढ़ता शोर और ईयर फोन से सुनने की क्षमता कम होती जा रही है। जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में हर महीने ईएनटी (नाक-कान-गला) के सात हजार मरीज आते हैं। इनमें कान की समस्या वाले सबसे अधिक होते हैं।
अगर सुनने की क्षमता सही रखनी है तो ध्वनि प्रदूषण से बचें। एक सीमा से अधिक शोरगुल होने पर लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है। तेज धुन से बजने वाले डैक, वाहनों का शोर, अधिक समय तक टीवी देखने और ध्वनि विस्तारित यंत्रों के ध्वनि प्रदूषण से हृदय रोग और सुने की क्षमता भी प्रभावित हो रही है।
चिकित्सकों लोगों को ध्वनि प्रदूषण से बचने की हिदायत देते हैं। इस संबंध में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल अप्रैल के आखिरी बुधवार को अंतरराष्ट्रीय शोर जागरूकता दिवस मनाया जाता है।
चिकित्सकों का कहना है कि इस बात को समझना होगा कि शहरी क्षेत्र में वाहनों के शोर के अलावा अधिक समय तक घरों में टीवी से चिपके रहने, ईयर फोन लगाकर घंटों गाने या फोन पर बात करने से बहरापन पनपने लगता है। रोड ट्रैफिक के कारण तेज हॉर्न बजने से स्वास्थ्य को नुकसान होता है। वैवाहिक कार्यक्रम के अलावा बर्थ डे आदि अन्य कार्यक्रमों में डीजे पर तेज ध्वनि से गानों को बजाने से कानों के पर्दे प्रभावित होते हैं।
जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में हर माह करीब सात हजार मरीज आते हैं। इनमें कानों की समस्या के सबसे ज्यादा मरीज होते हैं।
यह हैं सुनने की क्षमता के मानक
-15 से 20 डेसीबेल तक की आवाज से कान को कोई नुकसान नहीं होता है
-60 से 65 डेसीबेल के बाद कान को आवाज चुभने लगती है
-115 डेसीबेल की आवाज से कान का पर्दा फट सकता है
-85 से 120 डेसीबेल आवाज पटाखे की होती है
-85 से 115 डेसीबेल आवाज हेडफोन का होता है
साइन बोर्ड लगाने चाहिए
स्कूलों और अस्पतालों जैसे क्षेत्रों के आसपास यातायात प्रवाह को कम से कम किया जाना चाहिए। साइलेंस जोन वाले साइन बोर्ड लगाए जाने चाहिए। -डॉ. वीपी सिंह, ईएनटी, मेडिकल कॉलेज
स्वास्थ्य के लिए
शहरी क्षेत्र में वाहनों के शोरगुल के अलावा अन्य माध्यमों से फैल रहा ध्वनि प्रदूषण सेहत के लिए हानिकारक है। 50 डेसिबल ध्वनि स्तर तक सेहत खराब नहीं होती, लेकिन यदि यही ध्वनि स्तर 80 डेसिबल हो जाता है तो वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। -डॉ. अखिलेश मोहन, मुख्य चिकित्सा अधिकारी
घटने लगी सुनने की क्षमता
लगातार शोर-शराबे के बीच रहने से कान को नुकसान पहुंचता है। इससे सुनने की क्षमता घटने लगती है। लगातार शोर से संवेदी तंत्रिका को नुकसान हो सकता है। -डॉ. बीपी कौशिक, ईएनटी, जिला अस्पताल
