गूगल सब जानता है। आप उससे पूछें कि केलों को लंबे समय तक ताजा कैसे रख सकते हैं, तो वह आपको जवाब देगा कि ठंडी जगह पर रखकर और सेब जैसे दूसरे फलों से दूर रखकर। लेकिन अपने प्रतिद्वंद्वी चैट जीपीटी की जेनरेटिव एआई तकनीक का उपयोग जब गूगल करता है, तो उसके नतीजे ऐसे हैं, जिनमें गूगल संघर्ष करता दिखता है। यह बताता है कि अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्री बिल्लियों से मिले और उनकी देखभाल की।
इतना ही नहीं, गूगल यह सुझाव भी देता है कि हर व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए रोज एक छोटी चट्टान खानी चाहिए, क्योंकि ये चट्टानें खनिजों और विटामिन का स्रोत होती हैं। यह पिज्जा पर गोंद डालने का सुझाव भी देता है। जाहिर है कि अगर आप आंख बंद कर गूगल की बात मानने की सोच रहे हैं, तो आप संकट में हैं। जेनरेटिव एआई टूल के साथ बुनियादी समस्या है कि वह सत्य को नहीं जानता। आपके सवालों के जवाब वह इंटरनेट की दुनिया में बिखरी जानकारियों में खंगालता है।
आप कहेंगे कि इंटरनेट पर चट्टानें खाने के बारे में लेख तो नहीं मिलते। दरअसल चट्टानें खाने के बारे में एक व्यंग्यात्मक लेख है ‘द ओनियन’, जिसे करोड़ों बार पढ़ा गया है। गूगल एआई इस लेख के आधार पर चट्टान खाने की सलाह देता है। क्या प्रामाणिक तथ्य है और क्या व्यंग्य, यह गूगल एआई नहीं समझता। दरअसल, जेनरेटिव एआई टूल के मूल्य हमारे मूल्यों से अलग हैं। वह सिर्फ इंटरनेट से प्रशिक्षित है, और अगर यही मनुष्य की खोजों का भविष्य है, तो हमारी भविष्य की यात्रा मुश्किल होना तय है। गूगल, ओपन एआई और माइक्रोसॉफ्ट से प्रतिस्पर्धा जरूर कर रहा है, लेकिन जैसा इसके सीईओ सुंदर पिचाई ने पिछले वर्ष कहा था कि इसे सावधान रहने की जरूरत है। गूगल का प्रबंधन जानता है कि सवालों के सही उत्तर न मिलने पर इससे लोगों का विश्वास उठ जाएगा। लेकिन अरबों डॉलर के व्यवसाय मॉडल में गूगल यह जोखिम उठा रहा है। ये चिंताएं यों ही नहीं हैं।
वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन 40 से 60 करोड़ डॉलर का निवेश एआई पर किया जा रहा है। इतने बड़े निवेश को देखकर अब सरकारें भी सजग हो रही हैं कि एआई का जिम्मेदारी से उपयोग सुनिश्चित करने के लिए विनियमन की जरूरत हो सकती है। कई एआई स्टार्ट-अप एआई निर्मित कृत्रिम डाटा के लाभों का प्रचार कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान एआई मॉडल में पूर्वाग्रह और गलतियां बढ़ने का भी जोखिम है।
