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विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस (World Environmental Health Day) हर साल 26 सितंबर को पर्यावरणीय संकटों की गंभीरता और उनके मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। आज के समय में बढ़ते प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं का ख़तरा , प्राकृतिक संसाधनों का अति-उपयोग और जैव विविधता की हानि जैसे मुद्दे चिंता का विषय हैं। इन चुनौतियों के चलते न केवल पर्यावरण बल्कि मानव स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। साथ ही सतत् विकास और ग़रीबी उन्मूलन के लिए भी एक गंभीर चुनौती है इसके नकारात्मक प्रभाव इतने अधिक है कि दशकों की प्रगति रुक सकती है एक स्थाई और सशक्त समाज का निर्माण तभी संभव है जब हम पर्यावरणीय स्वास्थ्य के इन मुद्दों को गंभीरता से ले एवं इन्हें अपनी विकास योजना एवं बजट में समाहित करें
विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर, पर्यावरणीय मुद्दों को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी देखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। पर्यावरण संकट केवल बाहरी समस्याओं का परिणाम नहीं है, बल्कि यह मानव चेतना और आंतरिक दृष्टिकोण से भी गहराई से जुड़ा है। मानव का स्वार्थी दृष्टिकोण और प्रकृति के प्रति असंवेदनशीलता मुख्य कारण हैं, जिनसे यह संकट उत्पन्न हो रहा है।
पर्यावरण स्वास्थ्य की अवधारणा और उद्देश्य
विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस की शुरुआत 26 सितंबर 2011 को अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण स्वास्थ्य महासंघ (International Federation of Environmental Health – IFEH) ने की थी।इस दिन का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण और स्वास्थ्य के बीच संबंध के बारे में जागरूक करना है और पर्यावरणीय स्वास्थ्य में सुधार के लिए कार्य करने के लिए प्रेरित करना है।
थीम:
प्रत्येक वर्ष इस दिवस की एक अलग थीम होती है। 2024 की थीम ‘सतत् विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन के लिये पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रणालियों को सुदृढ़ बनाना’ है, जो यह संकेत देती है कि सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्यावरणीय स्वास्थ्य को मजबूत करना बेहद जरूरी है।
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) 2024:
2024 के पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) में भारत का 176वां स्थान दर्शाता है कि देश को पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत की कोयले जैसी प्रदूषक ऊर्जा स्रोतों पर अधिक निर्भरता ,जैव विविधता और पर्यावरणीय आवासों की कमी भी इस खराब रैंकिंग का प्रमुख कारण है।
पर्यावरणीय स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
प्रदूषण
औद्योगिक उत्सर्जन, वाहनों का धुआं, और जलती फसलों से हानिकारक गैसें (जैसे CO2, SO2, NOx) बढ़ रही हैं, जिससे अस्थमा और कैंसर जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ रही हैं। औद्योगिक कचरा और प्लास्टिक प्रदूषण जल, वायु, और भूमि को गंभीर नुकसान पहुँचा रहे हैं, जिससे पीने योग्य पानी की कमी और मृदा की उर्वरता में गिरावट हो रही है।
ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन
ग्लोबल वार्मिंग, जो जीवाश्म ईंधनों के जलने और वनों की कटाई के कारण लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुकी है, जलवायु पैटर्न में बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ा रही है। इसके परिणामस्वरूप बाढ़, सूखा, और तूफान जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं, जो मानव जीवन, जैव विविधता, और कृषि पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन
प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जैसे जल, वन, और खनिज, पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डालता है। जल का अत्यधिक उपयोग जल संकट और सूखा बढ़ाता है, वनों की कटाई जैव विविधता और वन्यजीवों के आवास को नष्ट करती है, और खनिजों की निकासी मिट्टी के क्षरण और प्रदूषण का कारण बनती है
ओजोन परत का क्षरण
क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) और अन्य हानिकारक गैसों का उत्सर्जन अब भी चिंता का विषय है। ओजोन परत की रक्षा करने के प्रयासों में प्रगति हुई है, लेकिन इसके लिए सतत प्रयासों की आवश्यकता है ताकि यह परत भविष्य में और न बिगड़े।
जैव विविधता का नुकसान
वनों की कटाई, शहरीकरण, कृषि विस्तार एवं जलवायु परिवर्तन ,अवैध शिकार ने जैव विविधता को बुरी तरह से प्रभावित किया है। वन्यजीवों के आवास नष्ट होने से कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं।
कचरे का असंगठित निस्तारण
ठोस कचरे और ई-कचरे के असंगठित निस्तारण से पर्यावरण को गंभीर खतरा है।
विकास बनाम पर्यावरण संघर्ष
शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की तीव्र गति से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। औद्योगिक विस्तार और निर्माण परियोजनाओं के लिए जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, जिससे जैव विविधता पर संकट पैदा हो रहा है।
पर्यावरण सुधार के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयास:
पर्यावरणीय स्वास्थ्य को सुधारने के लिए संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), और अन्य वैश्विक संस्थाएं कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम चला रही हैं। पेरिस समझौता,क्योटो प्रोटोकॉल,मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल,संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDGs), और ‘सेंडाई फ्रेमवर्क’ पर्यावरण संरक्षण और आपदा जोखिम को कम करने के लिए वैश्विक लक्ष्यों का निर्धारण करते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) पर्यावरण संरक्षण के लिए न्यायिक प्रणाली के माध्यम से काम करता है, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP),उज्ज्वला योजना, स्वच्छ भारत अभियान,मृदा बचाओ आंदोलन, हरित कौशल विकास कार्यक्रम, और नगर वन उद्यान योजना जैसे कार्यक्रम भी पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं।
जन साधारण की पर्यावरणीय स्वास्थ्य सुधारने में भूमिका
जन साधारण की पर्यावरणीय स्वास्थ्य सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका है। ऊर्जा बचत के लिए बिजली की खपत कम करना और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना आवश्यक है। पुनर्चक्रण की आदत अपनाकर कचरे को सही तरीके से अलग करने से प्लास्टिक प्रदूषण को घटाया जा सकता है। इसके अलावा, साइकिल चलाना, पैदल चलना या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है। पानी की खपत को कम करके जलवायु संतुलन बनाए रखा जा सकता है, जबकि अधिक से अधिक पौधे लगाकर और हरियाली बढ़ाकर पर्यावरणीय गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। अंततः, रासायनिक खाद और कीटनाशक से मुक्त स्थानीय और जैविक उत्पादों का उपयोग स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए बेहतर होता है।
आध्यात्मिकता और पर्यावरण स्वास्थ्य:
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, पर्यावरणीय समस्याएँ हमारे भीतर की चेतना और विचारधारा से उपजती हैं। जब तक मानव अपनी भोगवादी मानसिकता, लोभ, और प्रकृति के प्रति असंवेदनशीलता को नियंत्रित नहीं करता, तब तक पर्यावरणीय संकट का समाधान संभव नहीं। इस कारण आंतरिक चेतना का विकास अत्यंत आवश्यक है, ताकि प्रकृति के साथ एक सह-अस्तित्व की भावना विकसित हो सके।
प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता और नैतिक जिम्मेदारी:
पर्यावरण की सुरक्षा केवल बाहरी उपायों से नहीं हो सकती, बल्कि आंतरिक जागरूकता और जिम्मेदारी से ही समाधान प्राप्त किया जा सकता है। साधारण जीवन शैली अपनाने और भौतिक इच्छाओं को नियंत्रित करने से न केवल आंतरिक शांति प्राप्त होगी, बल्कि पर्यावरण संतुलन भी बना रहेगा।
निष्कर्ष:
विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्वास्थ्य आपस में जुड़े हुए हैं। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सामूहिक प्रयास और जागरूकता बेहद जरूरी है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य मिल सके। इस विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस पर, आध्यात्मिक जागरूकता, प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता और नैतिक जिम्मेदारी अपनाकर, हम न केवल पर्यावरणीय संकट से निपट सकते हैं, बल्कि एक संतुलित और स्वस्थ पर्यावरण का निर्माण भी कर सकते हैं।
श्रीमती रंजना साहू
सहायक प्राध्यापक (प्राणी शास्त्र )
किरोड़ीमल शास. कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, रायगढ़ ,छत्तीसगढ़
