लोकनायक जयप्रकाश के सपनों को साकार करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा निर्मित उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के बीच दिलों का रिश्ता जोड़ने वाला जयप्रभा सेतु कोरोना महामारी के इस दौर में लावारिश शवों को ठिकाने लगाने का सुरक्षित स्थान बन चुका है। सोमवार की रात दो शवों को फेंककर एंबुलेंस चालक भाग खड़े हुए। जबकि उसके आस-पास पहले से फेंके गए दो सड़े गले शवों को कुत्ते व कौवे नोच रहे थे।
बता दें कि सोमवार की सुबह यूपी के गाजीपुर जिले के बारा गांव से लेकर बक्सर जिले के चौसा श्मशान घाट के पास गंगा के उत्तरायणी होने के बाद लगभग 40 लाशें बहती देखी गईं थी। ग्रामीणों का कहना था कि संक्रमितों के मर जाने के बाद बहुत लोग लाशों को गंगा व कर्मनाशा में जलप्रवाह कर चले जा रहे हैं, जो बाद में किनारे पर लग जा रही हैं।
मंगलवार सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए निकले लोगों ने जयप्रभा सेतु के नीचे पड़े चार शवों को देखकर सन्न रह गए। दोनों तरफ बहती सरयु की धारा के बीचों-बीच रेत पर नीले रंग के कोरोना किट में पैक एक शव तथा कफ़न में लिपटी दूसरी लाश थी। इसके अलावा एक शव, जिसका सिर्फ अस्थि शेष मात्र बचा हुआ था, बगल में पड़ा हुआ था। इन तीन शवों के अलावा लगभग दो सौ मीटर दूर एक अन्य शव को भी देखा गया। स्थानीय लोगों ने बताया कि एंबुलेंस ड्राइवर आये दिन शवों को सरयू में बहा देते हैं। कई बार स्थानीय लोगों के विरोध को देखते हुए मांझी थाने की पुलिस ने शव फेंकने आये एंबुलेंस चालकों को खदेड़ कर भगा दिया। इसके अलावा मांझी तथा ड्यूमाइगढ़ श्मशान घाट पर प्रतिदिन दाह संस्कार के लिए लाए जा रहे दर्जनों शवों में से कई लाशों को लोग अधजला छोड़कर भाग जा रहे हैं।