कांच ही बांस के बहगिया, बहंगी लचकत जाय…
बंटी जायसवाल/भभुआ कैमूर। लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा आज शुक्रवार को कैमूर जिले सहित पूरे बिहार में धूमधाम से मनाया जा रहा है। कोरोना काल में पहली बार छठ महापर्व हो रहा है। छठ महापर्व को लेकर बिहार सरकार के गृह विभाग द्वारा गाइडलाइंस जारी किया गया है। छठ व्रतियों द्वारा अस्तचलगामी भगवान भास्कर को चार दिवसीय छठ महापर्व के अनुष्ठान के तीसरे दिन शाम को पहला अर्घ्य दिया गया है। वही शनिवार की सुबह उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य दिये जाने के बाद लोक आस्था का यह महापर्व छठ पूजा सम्पन्न हो जायेगा।
कैमूर जिला मुख्यालय के भभुआ शहर के राजेन्द्र सरोवर, पूरब पोखरा, बाबा जी पोखर, सुअरन नदी सहित, जिले के दुर्गावती नदी, कर्मनाशा नदी सहित तालाब व पोखर में छठ व्रतियों ने डूबते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया गया है। छठ घाट पर काफी रौनक देखने को मिली। छठ घाट पर बच्चे भी मस्ती करते देखें गए। व्रतियों द्वारा छठ घाट पर छठ मईया का कई प्रकार गीत भी गाये जा रहे थे। वही भगवानपुर प्रखंड के सुअरा नदी व सोन उच्चस्तरीय नहर के छठ घाटों पर भी व्रतियों द्वारा डूबते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया गया।
700 छठ व्रतियों के बीच बांटा गया फल भगवानपुर प्रखंड के जैतपुर कलां पंचायत के पैक्स अध्यक्ष सह व्यापार मंडल अध्यक्ष रामकेश्वर सिंह ने 700 छठ व्रतियों के बीच फल वितरण किया गया। उन्होंने बताया कि जैतपुर कलां , मोकरम, दवनपुर, मझियाव,बसंतपुर सहित कई गांवों के छठ घाटों पर पहुँच कर फल को झोले में लगाकर बांटा गया। वही रामपुर प्रखंड के सबार गांव के दुर्गावती नदी के छठ घाट पर आने वाले व्रतियों सबार पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि धर्मेंद्र सिंह द्वारा फल का वितरण किया गया।
दंडवत करते हुए छठ घाट पहुँची व्रती
दुर्गावती नदी छठ घाट पर ऐसे छठ मईया के व्रती देखे गए जो अपने घर से दंडवत करते हुए पहुँची। बताया जाता है कि दंडवत करते छठ घाट पर वही व्रती पहुँचते है जो छठी मईया से मन्नत मांगने के बाद पूरा होने के बाद ऐसा करते है। छठ महापर्व सभी पर्वो में अनोखा व सादगी से भरा होता है। दंडवत करने वाले व्रती को यह कठिन तपस्या मानी जाती है।
छठ पूजा की खास बात छठ पूजा को लेकर हर घरों में छठ मईया को प्रसाद चढ़ाने के लिए व्रतियों द्वारा दोपहर में आटे व चीनी से ठेकुआ बनाया गया। इस पर्व की खास बात ये भी है कि इसमें व्रती खुद से ही सारी पूजा करते हैं।किसी पुरोहित या विशेष मंत्रों की जरूरत नहीं पड़ती है।यहां तक कि पूजा का प्रसाद भी महिलाएं खुद ही बनाती हैं।कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा है।छठ पूजा के धार्मिक महत्व के साथ-साथ तमाम वैज्ञानिक पहलू भी हैं।कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक चलने वाले चार दिन के पर्व छठ को मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है।
पवित्रता का रखा जाता है खास ख्याल
छठ व्रत में व्रतियों द्वारा शारीरिक और मानसिक रूप से पवित्रता का बहुत ज्यादा ख्याल रखा जाता है।छठ पर्व की हर परंपरा में प्रकृति से जुड़े तत्वों को समाहित किया गया है।सूर्य की उपासना से लेकर मिट्टी के चूल्हे में खाना बनाने की परंपराओं वाला छठ का त्योहार हमें प्रकृति के नजदीक ले जाता है। छठ पर्व में पवित्रता का खास ख्याल रखा जाता है।इस पर्व में पूरे चार दिन शुद्ध और स्वच्छ कपड़े पहने जाते हैं।
छठ घाट पर किये गए है व्यवस्था रामपुर प्रखंड के सबार दुर्गावती नदी छठ घाट पर पूजा समिति व सामाजिक लोगों द्वारा व्रतियों को कपड़ा चेंज करने के लिए बांस व प्लास्टिक लगाकर टेंट बनाया गया है। प्रकाश की व्यवस्था की गई है।
प्रशासन भी दिखा तैनात कैमूर जिले के सभी संवेदनशील छठ घाटों पर मजिस्ट्रेट सहित पुलिस पदाधिकारी व जवानों को तैनात किया गया था। वही पदाधिकारियों द्वारा कोरोना संक्रमण के बचाव के गाइडलाइंस का पालन कराया जा रहा था। मजिस्ट्रेट,पुलिस पदाधिकारी, महिला व पुरुष बल के जवान सुरक्षा के लिए तैनात देखें गए।
कोरोना के गाइडलाइंस का नहीं हुआ पालन कैमूर जिले में छठपूजा को लेकर कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए गाइडलाइंस जारी किया गया था। लेकिन इसका पालन नहीं हो पाया। छठ घाटों पर व्रतियों व लोगों की काफी भीड़ लगी रही। व्रती या अन्य लोगों द्वारा मास्क का उपयोग नहीं हुआ तो सोशल डिस्टेसिंग का भी पालन नहीं होता हुआ देखा गया।
छठ घाटों पर खाद्य सामग्री की स्टॉल या चाट गोलगप्पे के ठेले लगाए गए थे। जब कि कोरोना के गाइडलाइंस में इन नियमो का पालन करना था। वही 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चें व 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को छठ घाट पर नहीं जाना था। लेकिन 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे बहुत देखें गए।