मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सहित प्रदेश की तीन वामपंथी पार्टियों तथा जन संगठनों ने किसान विरोधी तीन कानूनों और मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं को वापस लेने, पेट्रोल-डीज़ल व खाद्यान्न सहित सभी आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों पर रोक लगाने, सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का कानून बनाने तथा कोरोना संकट का मुकाबला करने के लिए सभी जरूरतमंद परिवारों को मुफ्त राशन किट देने और उन्हें नगद आर्थिक सहायता देने, कोरोना मौत से पीड़ित सभी परिवारों को आपदा प्रबंधन कानून के अनुसार हरेक मौत पर चार लाख रुपये मुआवजा देने आदि मांगों को लेकर गांव-गांव व कार्य स्थलों पर प्रदर्शन किया तथा केंद्र की मोदी सरकार की जनविरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की। ये विरोध प्रदर्शन प्रदेश के 10 से ज्यादा जिलों में आयोजित किये गए।
रायपुर में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन व मजदूर-किसान महासंघ से जुड़े घटक संगठनों और प्रगतिशील किसान संगठन सहित 20 से ज्यादा किसान संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने मोतीबाग से राजभवन की ओर मार्च किया, जिसे तय बिंदु से काफी पहले पुलिस ने रोक लिया। पुलिस के इस व्यवहार से आक्रोशित किसानों ने सड़क पर ही धरना देकर अपना विरोध व्यक्त किया। माकपा राज्य सचिव व छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार भी केंद्र की मोदी सरकार की तरह आम नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलने पर आमादा है और शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आंदोलनों के प्रति असहिष्णु है। इन किसान संगठनों ने बस्तर में सिलगेर में सैनिक कैम्प के खिलाफ आंदोलन कर रहे आदिवासी किसानों पर गोली चलाने की तीखी निंदा की है और इस हत्याकांड की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच की मांग करते हुए दोषी अधिकारियों को तुरंत निलंबित करने की मांग की है। इधर 28 जून को सारकेगुड़ा में हो रही जन सभा में हिस्सा लेने के लिए छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री की अनुमति के बाद कल सारकेगुड़ा रवाना जो रहा है।
उल्लेखनीय है कि आज देशव्यापी किसान आंदोलन के 7 माह पूरे होने के साथ ही 1975 में देश में थोपे गए आपातकाल की 46वीं बरसी भी मनाई जा रही है। माकपा नेता ने बताया कि राजधानी रायपुर के अलावा कोरबा, दुर्ग, बिलासपुर, रायगढ़, बलरामपुर, मरवाही, सरगुजा, सूरजपुर, धमतरी, कांकेर व अन्य जिलों में आंदोलन होने और स्थानीय अधिकारियों को राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपे जाने की खबरें लगातार आ रही है। इन आंदोलनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, सीटू, आदिवासी एकता महासभा, जनवादी महिला समिति के कार्यकर्ता व समर्थकों ने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया।
माकपा नेता ने कहा कि कोरोना संकट के कारण देश के तीन करोड़ मध्यवर्गीय परिवार गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं और करोड़ों लोगों को अपनी आजीविका से हाथ धोना पड़ा है। इसके बावजूद मोदी सरकार ने इन गरीबों को राहत देने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए हैं, जबकि मंदी में फंसी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए मांग बढ़ाने और इसके लिए आम जनता की जेब में पैसे डालने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश अघोषित आपातकाल के दौर से गुजर रहा है और संविधान, कानून और जनता के जनतांत्रिक अधिकारों को निर्ममता से कुचला जा रहा है। पूरे प्रदेश में आज आंदोलनरत लोगों ने उक्त मांगों पर अपना संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया है।