Highcourt News Bilaspur: तेंदूपत्ता संग्रहणकर्ता मालिक तो शत-प्रतिशत राशि क्यों नहीं दे रही सरकार

by Kakajee News

बिलासपुर।Highcourt News Bilaspur: सेवानिवृत पीसीसीएफ एसके शुक्ला की जनहित याचिका ने राज्य सरकार की परेशानी बढ़ा दी है। याचिकाकर्ता ने वन अधिकार अधिनियम 2006 में दिए गए प्राविधानों का हवाला देते हुए तेंदूपत्ता संग्राहकों को वर्ष 2007 से लेकर अब तक का एरियर्स की राशि तकरीबन एक हजार करोड़ स्र्पये भुगतान की मांग की है। याचिकाकर्ता ने यह सवाल भी उठाया है कि जब वन अधिकार अधिनियम को प्रभावी करने के बाद राज्य सरकार को तेंदूपत्ता संग्राहक जिनको मालिकाना हक दिया है बिक्री का शत-प्रतिशत भुगतान क्यों नहीं कर रही है। याचिकाकर्ता ने अधिनियम के प्रभावी होने की तिथि से 2020 तक एरियर्स की राशि जो तकरीबन एक हजार करोड़ स्र्पये है,भुगतान की मांग की है।

शुक्रवार को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने विशेष डिवीजन बेंच का गठन किया था। स्पेशल डिवीजन बेंच में जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कार्यकारी चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा व जस्टिस दीपक तिवारी ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। रिटायर्ड पीसीसीएफ एसके शुक्ला ने वकील रोहित शर्मा के जरिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने वर्ष 2009 में एक पत्र जारी किया था। इसमें तेंदूपत्ता के विक्रय से प्राप्त होने वाली कुल राशि का 85 प्रतिशत संग्रहणकर्ताओं को भुगतान करने व शेष 15 प्रतिशत की राशि माइनर फारेस्ट के विकास कार्य में खर्च करने की व्यवस्था की थी। इसी 15 प्रतिशत में पांच फीसद विपणन संघ के लिए आरक्षित रखने की व्यवस्था की है। याचिका के अनुसार वर्ष 1964 के तेदूपता अधिनियम में राज्य शासन को अधिकारदिया गया था कि वह तेंदूपत्ता व्यापार को नियंत्रित करेगी और अपने देखरेख में निविदा आमंत्रित करने से लेकर व्यापार की पूरी गतिविधियों का देखरेख करेगी। याचिकाकर्ता के वकील रोहित शर्मा ने वन अधिकार अधिनियम की जानकारी देते हुए डिवीजन बेंच को जानकारी दी कि वर्ष 2006 में (फारेस्ट राइट एक्ट) वन अधिकार अधिनियम को प्रभावी किया गया है। अधिनियम में प्राविधान है कि जंगलों में निवास करने वाले वनवासियों व आदिवासियों की बेहतरी के लिए तेंदूपत्ता को गैर काष्ठ वनोपज की श्रेणी में रखा गया। मतलब साफ है कि तेंदूपत्ता का मालिकाना हक तेंदूपत्ता बिनने वाला या संग्रहण करने वाला आदिवासी हो गया। अधिनियम में यह प्राविधान रखा गया है कि इसका मूल्य निर्धारित होगा। खरीदी के लिए निविदा आमंत्रित की जाएगी। निविदा के अनुसार खरीदी होगी। संग्रहण के लिए जंगलों में फड़ बनाया जाएगा। याचिका के अनुसार वर्तमान स्थिति में तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य सरकार करती है।

इसलिए सरकार को देना होगा खरीदी मूल्य

जनहित याचिका में वर्ष 2006 में वन अधिकार अधिनियम में दिए गए प्राविधानों का व्याख्या करते हुए कहा है कि अब तेंदूपत्ता संग्रहणकर्ता को मालिकाना हक मिल गया है। जिसका मालिकाना हक होगा बिक्री से प्राप्त होने वाले आय का शत प्रतिशत हिस्से पर उसका अधिकार रहेगा। लिहाजा शासन को खरीदी मूल्य देना होगा। अधिनियम के प्रभावी होने के बाद से लेकर वर्ष 2020 तक सरकार ने अधिनियम का पालन ही नहीं किया है। याचिकाकर्ता ने वर्ष 2007 से 2020 तक तेंदूपत्ता संग्राहकों को एरियर्स की राशि का भुगतान कराने की मांग की है। तकरीबन एक हजार करोड़ स्र्पये राज्य शासन को संग्राहकों को देना होगा।

जवाब के लिए सरकार को फिर मिली मोहलत

बीते सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने राज्य शासन को विस्तृत जवाब पेश करने के लिए चार सप्ताह की मोहलत दी थी। शुक्रवार को स्पेशल डिवीजन बेंच ने एक बार फिर मोहलत देते हुए दो सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने का निर्देश राज्य शासन को दिया है।

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