पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में MBBS फर्स्ट ईयर के छात्रों को छत्तीसगढ़ी बोली सिखाई जानी थी। लेकिन रायपुर समेत प्रदेश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में इसके लिए टीचर ही नियुक्ति नहीं हुए।
शिक्षकों की कमी की वजह से कभी क्लास भी नहीं लगी। अब यह पूरा प्रोग्राम ही बंद हो गया है। 2019 में मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया ने देशभर के मेडिकल कॉलेजों को एमबीबीएस छात्रों को स्थानीय बोली की जानकारी देने कहा था।
यह ओरिएंटेशन प्रोग्राम के तहत होना था, जिसमें दो से तीन माह तक रेगुलर क्लास के बाद छत्तीसगढ़ी की क्लास लगती। कोरोना और लॉकडाउन के बाद नियमित क्लास ही नहीं लगी इसलिए ओरिएंटेशन प्रोग्राम भी बंद हो गया।
एमसीआई का मानना है कि मेडिकल कॉलेजों में दूसरे राज्यों से काफी संख्या में छात्र पढ़ाई करने आते हैं। ये ज्यादातर आल इंडिया कोटे ,या सेंट्रल पल के तहत होते है ।
स्थानीय मरीजों के इलाज के दौरान स्थानीय बोली से मरीजों की बीमारी बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती। स्थानीय छात्रों से बातचीत भी आसान होती। इसलिए स्थानीय बोली को सीखने में जोर दिया जा रहा है ।
