अफसर बनने का था सपना, अब खाने के भी लाले, कोरोना महामारी ने छीना मां-बाप का साया, अब बच्चों के भविष्य पर संकट

by Kakajee News

बाबूजी का सपना था कि पढ़-लिखकर अफसर बनूं। आमदनी इतनी नहीं थी कि शहर जा पाती तो गांव के ही स्कूल में एडमिशन लिया। कोरोना हुआ तो कहते कि तू मेरी बहादुर बेटी है। तुझे हिम्मत नहीं हारनी है, मगर हम सब कुछ हार चुके हैं। अब अपने छोटे भाई-बहनों के लिए भोजन कहां से इंतजाम करूं। बूढ़ी दादी है। चार बहन हैं हमलोग और दो भाई। सबसे बड़ी मैं हूं और सबसे छोटा चार साल का। यह कहते हुए साहेबगंज के माधोपुर गांव की अमृता रो पड़ती है।
16 वर्षीया अमृता की जिस आंखों में कल तक अफसर बिटिया बनने का सपना बसता था, वहां अब आंसू के साथ इसकी चिंता बसती है कि भोजन कहां से आएगा। कोरोना ने माता-पिता का साया छीन लिया और अब भाई-बहनों की परवरिश पर संकट है। कोरोना में अनाथ हुए बच्चों में अधिकांश बेटियां है। 18 से कम उम्र की इन बच्चियों के सामने अब भोजन जुटाने की भी मुश्किल है। अमृता अपने छह भाई-बहनों की देखभाल की जिम्मेदारी उठा रही तो पारू की गुड्डी अब रिश्तेदारों के सहारे है। अमृता कहती है कि पिता किसानी करते थे तो परिवार का पेट पलता था। अमृता की बुआ रामजती कहती हैं कि इन बच्चों के भविष्य को लेकर अबतक कोई मदद नहीं मिली है। कोई छठी में तो कोई आठवीं में पढ़ती है। हमलोग कब तक मदद कर पाएंगे, पता नहीं।

Related Posts