कोरोना में इंसानों के साथ इंसानियत भी दम तोड़ती नज़र आ रही है। लोग पास-पड़ोस वालों के गम में भी शरीक नहीं हो पा रहे हैं। पहले जरा सी बीमारी में दिन भर हाल-चाल लेने वाले भी कोरोना के बारे में जानकर खामोशी अख्तियार कर ले रहे हैं। इसे वक्त की मजबूरी कहें या कुछ और लेकिन मातम के इस माहौल में खुद को बचाने की जद्दोजहद के आगे इंसानियत और हमदर्दी जैसे शब्द बौने साबित होने लगे हैं। ऐसा ही दिल को रुला देने वाला एक वाकया गोरखपुर में पेश आया है जहां एक परिवार में पहले पिता फिर शिक्षक बेटे की मौत के बाद मोहल्लेवालों ने धड़ाधड़ अपने घरों के दरवाजे और खिड़कियां बंद कर लीं। संक्रमण के चलते शिक्षक के भाई और भतीजे पहले ही दूसरी जगह पर आइसोलेशन में थे। घर पर छह घंटे तक लाश पड़ी रही लेकिन कोई कंधा देने वाला नहीं मिला।
मदद तब मिली जब दूसरे मोहल्ले में आइसोलेशन में रह रहे शिक्षक के भाई ने फोन से प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी जानकारी दी। इसके बाद दोपहर करीब एक बजे प्रशासन ने शव वाहन के साथ टीम को भेजा तब शव राप्ती तट पर ले जाया गया। पिता को मुखाग्नि देने वाले बड़े भाई ने ही छोटे भाई का अंतिम संस्कार किया। इंसानियत को झकझोर देने वाली यह घटना गोरखपुर के रामजानकी नगर की है। 12 अप्रैल को कॉलोनी में रहने वाले रिटायर बिजली कर्मचारी के घर मौत ने दस्तक दी। रिटायर बिजलीकर्मी चल बसे। परिवार के मुताबिक उनकी रिपोर्ट निगेटिव थी लेकिन लक्षण कोरोना वाले ही थे। ऐसे में शिक्षक बेटे ने अपनी और दोनों भाइयों व बच्चों की 11 अप्रैल को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जांच कराई जिनकी रिपोर्ट पिता की मौत के एक दिन बाद पॉजिटिव आई थी। पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद परिवार होम आइसोलेशन में था।
इस सदमे से परिवार अभी उबर भी नहीं पाया था कि गुरुवार की देर रात शिक्षक की हालत बिगड़ गई। शुक्रवार तड़के संक्रमित भाई और भतीजे उन्हें ऑटो से एचएन सिंह चौराहे के पास एक निजी अस्पताल पर ले गए, जहां डॉक्टर ने उन्हें मृत बताया। यहां से उन्हें बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले गए जहां कोविड हॉस्पिटल के सामने एंबुलेंस ड्यूटी में तैनात टेक्नीशियन ने भी मृत बताया तब सुबह करीब 7 बजे शव लेकर घर आ गए। इसके बाद देखते ही देखते आसपास के घरों के दरवाजे और खिड़कियां बंद हो गईं। दोपहर तक शव घर पर ही पड़ा रहा। कांधा देने के लिए चार लोग भी नहीं मिले। इस बीच कोतवाली क्षेत्र में रहने वाले विजय श्रीवास्तव को इसकी जानकारी हुई। भाई के संक्रमित होने से खुद को आइसोलेट करने वाले विजय ने फोन से प्रशासनिक अफसरों को सूचना दी। इसके बाद दोपहर करीब एक बजे प्रशासन ने शव वाहन के साथ टीम को भेजा तब शव राप्ती तट पर ले जाया गया। पिता को मुखाग्नि देने वाले बड़े भाई ने ही छोटे भाई का अंतिम संस्कार किया।
घर के अंदर से बाहर तक सभी काम देख रहे थे शिक्षक
पिता की मौत के बाद पंडित से लेकर नाऊ तक सभी व्यवस्था में शिक्षक लगे हुए थे। घर के अंदर और बाहर का काम उन्हीं के जिम्मे था। शिक्षक के परिवार में तीन महिलाएं यानी तीनों भाइयों की पत्नियां और पांच बच्चों सहित 10 सदस्य हैं। शिक्षक के दो बच्चे हैं बड़ा बेटा करीब दस साल का है। वहीं शिक्षक के बड़े भाई अधिवक्ता हैं तो छोटे भाई एक सरकारी विभाग में नौकरी करते हैं। बड़े भाई को एक बेटा है, वहीं बच्चों में सबसे बड़ा है। छोटे भाई के भी दो बच्चे हैं उनकी उम्र भी दस साल के नीचे ही है। घर में चार दिन में हुई दो मौत के बाद परिवार के लोग सहमे हैं।
अंतिम संस्कार के लिए प्रोटोकाल
अस्पताल में संक्रमित की मौत होने पर शव को किट में पैक कर स्वास्थ्य विभाग की टीम को सौंप दिया जाता है। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम की टीम प्रोटोकाल के तहत अंतिम संस्कार करती है।
होम आइसोलेशन में मौत होने की सूचना पर सूचना स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है कि वह शव का अंतिम संस्कार कोविड प्रोटोकाल के तहत कराए। इसमें नगर निगम की टीम भी मदद करती है।
कंटेनमेंट जोन में तब्दील हुआ घर
इस घटना ने प्रशासन के इंतजामों की पोल खोल दी। दो से अधिक संक्रमित होने पर एरिया को कंटेनमेंट जोन में तब्दील करना था। यह प्रक्रिया भी अब तक नहीं हुई थी। तहसीलदार को जब जानकारी हुई तो उन्होंने घर के आसपास छिड़काव करा गली को बांस-बल्ली से घेर कर कंटेनमेंट जोन में तब्दील कराया।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में संक्रमितों की मौत पर नगर निगम को सूचना दी जाती है। उस सूचना पर अन्तिम संस्कार की व्यवस्था राप्ती तट पर की जाती है। संक्रमितों के अन्तिम संस्कार के लिए पांच कर्मचारियों की तैनाती की गई है। तीन दिन में 15 संक्रमितों का अन्तिम संस्कार किया गया है। घर पर किसी संक्रमित की मौत की जानकारी होने पर ही मदद मिलती है।