सरेंडर के बाद बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहा, संवार रहा बच्चों का भविष्य; हर रोज 2 घंटे लेता है क्लास

by Kakajee News

बस्तर के माओवाद संगठन में रह कर कभी मासूमों को नक्सलवाद का पाठ पढ़ाने वाला नक्सली अब सरेंडर के बाद बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहा है। सरेंडर नक्सली दुर्गेश दंतेवाड़ा के शांति कुंज में रहने वाले 10 बच्चों की रोज शाम 2 घंटे क्लास लेता है। उन्हें अ से अनार से लेकर ABCD लिखना और पढ़ना सिखाता है। कभी संगठन में रहकर बच्चों को हथियार चलाने से लेकर एंबुश में जवानों को फंसाने की शिक्षा देने वाला हार्डकोर नक्सली दुर्गेश अब सरेंडर के बाद बच्चों का भविष्य संवारने का काम कर रहा है।


दंतेवाड़ा के पुलिस लाइन में स्थित शांति कुंज में एक दर्जन से ज्यादा सरेंडर नक्सलियों का परिवार निवासरत है। वहीं सरेंडर नक्सलियों के बच्चे पास के ही स्कूल में पढ़ाई करने के लिए जाते हैं। इधर, दुर्गेश सरेंडर करने के बाद DRG में भी शामिल हो गया है। दिनभर ड्यूटी के बाद जब शाम को घर लौटता है तो बच्चों को पढ़ाता है। शांति कुंज के हॉल में ही बच्चों की 2 घंटे क्लास लेता है। दुर्गेश ने कहा कि, मैं देश के भविष्य की नींव तैयार कर रहा हूं। एक अच्छे समाज के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। इन बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर से लेकर बड़ा अफसर बनते हुए देखना चाहता हूं।

8 लाख रुपए का था इनाम
दरअसल, गांगलूर इलाके के हिरमामुंडा गांव का रहने वाला दुर्गेश नक्सलियों का एरिया कमेटी मेंबर (ACM) था। इस पर छत्तीसगढ़ शासन की ओर से 8 लाख रुपए का इनाम भी घोषित था। दंतेवाड़ा पुलिस के द्वारा चलाए जा रहे लोन वर्राटू अभियान से प्रभावित होकर दुर्गेश ने साल 2020 में हिंसा का रास्ता छोड़ दिया और दंतेवाड़ा पुलिस के आमने आकर सरेंडर कर दिया। दुर्गेश ने खुद 8वीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है। इसके फुर्तीले शरीर को देखकर नक्सली इसे साल 2007 में अपने साथ लेकर गए थे। संगठन में शामिल कर हाथों में हथियार थमा दिया था।

शारीरिक रूप से कमजोर हुआ तो नक्सलियों ने स्कूल चलाने को कहा
दुर्गेश, तड़केर की मुठभेड़ में घायल हो गया था। इसके पैर में गोली लगी थी। साथी नक्सली इसे घटना स्थल से उठाकर ले गए थे, फिर किसी तरह से इसका हैदराबाद में इलाज करवाया था। जहां बेहतर इलाज न मिलने की वजह से इसे फिर भद्राचलम लाया गया। यहां इसका इलाज चला। पैर में गोली लगने के बाद दुर्गेश की फुर्ती थोड़ी कम हो गई थी, वह शारीरिक रूप से कमजोर हो गया था। जिसके बाद नक्सलियों ने इसे एक गांव में ही बैठा दिया था। जहां ये नक्सलियों की स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम किया करता था।

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